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'खालीपन'

'Emptiness' (Author: R. Ranjan) 


एक हथौड़े पर विचार कीजिए। कीलों पर प्रहार करने के लिए ही उसका खाका तैयार किया गया। यही करने के लिए उसकी रचना की गई। अब कल्पना कीजिए कि हथौड़े का कभी प्रयोग नहीं हुआ। वह औजार बॉक्स में ही रखा रहा। हथौड़े ने भी इसकी परवाह नहीं की।

पर अब कल्पना कीजिए कि उसी हथौड़े की अपनी एक आत्मा है, आत्म जागरूकता है। औजार बॉक्स में रहते हुए दिन बीतते जाते हैं। अंदर हथौड़े को अजीब सा महसूस होता है, पर उसे समझ में नहीं आता क्यों? कुछ है जो अनुपस्थित है, पर उसे नहीं पता वह क्या है?

फिर एक दिन कोई उसे खींचकर औजार बॉक्स से बाहर निकालता है और उसका प्रयोग आग रखने के स्थान के लिए कुछ शाखाओं पर प्रहार करने के लिए करता है। हथौड़ा खुशी से पागल हो जाता है। उसे पकड़ा गया, ताकत लगाई गई और शाखाओं पर प्रहार किया गया - हथौड़े को बहुत अच्छा लगा। पर दिन के समाप्त होने पर, उसमें फिर भी असंतोष था। शाखाओं पर प्रहार करने में उसे मजा आया, पर वही सबकुछ नहीं था। कुछ फिर भी अनुपस्थित था।

बाकी जो दिन आते गए, उसमें बहुत बार उसे प्रयोग में लाया गया। उसने हबकैंप का नया ढाँचा गढ़ा, चट्टान की नई परत में विस्फोट किया, एक मेज के पाए पर प्रहार करके उसे अपने स्थान पर लगाया। फिर भी वह असंतुष्ट और अपूर्ण था। अतः वह ज्यादा से ज्यादा कार्य करना चाहता था। अपने चारों तरफ की चीजों पर प्रहार करने के लिए, उन्हें तोड़ने के लिए, विस्फोट करने के लिए, चीजों पर पैबन्द लगाने के लिए वह ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाया जाना चाहता था। उसे लगता था कि ये सभी घटनाएँ उसे संतुष्ट करने के लिए काफी नहीं थी। उसे विश्वास था कि उन सबका ज्यादा मात्रा में होना ही उसकी संतुष्टि का कारण होगा।

फिर एक दिन किसी ने उसका प्रयोग कील के साथ किया। अचानक, उस हथौड़े की आत्मा प्रकाशित हो गई। अब उसकी समझ में आया कि वास्तव में कौन सा काम करने के लिए उसे बनाया गया है। उसका मुख्य काम कीलों पर प्रहार करना था। उसने अब तक जितनी भी चीजों पर प्रहार किया था वे सभी इसकी तुलना में फीकी थीं। अब वह हथौड़ा जान गया था कि इतने दिनों से उसकी आत्मा क्या ढूँढ़ रही थी।
                            
शायद, हम हथौड़े की तरह हैं। हमें पता नहीं चलता है कि हमारा खालीपन कैसे खत्म होगा? हाँ, .... यह खालीपन .....
                                                                                                      
                                                                                                             राजीव रंजन