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समावेशी शिक्षा के अर्थ, परिभाषाओं, विशेषताओं, उद्देशों, आवश्यकताओं और सिद्धान्तों का वर्णन करें

Describe the meaning, definitions, characteristics, objectives, requirements and principles of inclusive education.

Describe the meaning, definitions, characteristics, objectives, requirements and principles of inclusive education.     समावेशी शिक्षा जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, जो सबको समाहित कर ले अर्थात ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। अर्थात हर वर्ग के हर प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में एक विद्यालय में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है।        समावेशी शिक्षा अथवा समावेशन की उक्ति 'सब के लिए सामान्य स्कूल में शिक्षा' के प्रत्यय को स्पष्ट करती है। यह भावना विश्वासों का एक ऐसा प्रतिमान है जो एक सार्वभौमिक समाज के निर्माण एवं विकास का उद्देश्य रखता है, जिसमे प्रत्येक व्यक्ति के लिए जगह हो।        समावेशी शिक्षा सामान्य एवं विशिष्ट बच्चों को सब को साथ लेकर, सम्मिलित करते हुए बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए उनके बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त परस्पर सीखने-सिखाने तथा अभियोजन का प्रयास है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी भी भेदभाव व अंतर के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान की जाती है। ताकि समाज के सभी बालको को एक स्तर पर लाया जा सके।         समावेशी शिक्षा में मुख्य रूप से चार  प्रक्रियाएँ महत्वपूर्ण हैं-      1 सामान्यीकरण   2 संस्था रहित शिक्षा   3 शिक्षा की मुख्यधार   4 समावेश    मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार 'समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी सीखने वाले , बालक हो अथवा युवा, चाहे अशक्त हो या नहीं,सामान्य विद्यालय- पूर्वव्यावस्था विद्यालयों एव सामुदायिक शिक्षा केंद्रों में उपयुक्त सहयोगी सेवाओं के साथ आपस मे मिलजुल कर सीखने में समर्थ हो। उन्होंने आगे स्पष्ट किया है- मुख्यधारा के विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकताओं के बच्चे का अपने अन्य सहपाठियों के साथ शिक्षा ग्रहण करना।       उमातुलि के अनुसार       “समावेशन एक प्रक्रिया है, जिसमे प्रत्येक विद्यालय को दैहिक, संवेगात्मक, तथा सीखने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संसाधनों का विस्तार करना होता है।”       प्रोफेसर S.K. Dubey के अनुसार       “शैक्षिक समावेशन एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो छात्रों की योग्यता क्षमता एवं स्थितियों के अनुरूप दी जाती है।”     श्रीमती R•K• शर्मा के अनुसार      “शैक्षिक समावेशन एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसके द्वारा प्रतिभाशाली एवं शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों को सूचित किया जाता है।”         यूनेस्को ने अपने अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन, जेनेवा (2008) में स्पष्ट किया कि "समावेशी शिक्षा अधिगमकर्ताओं के गुणात्मक शिक्षा के मौलिक अधिकार पर आधारित है जो आधारभूत शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर जीवन को समृद्ध बनाती है। अतिसंवेदनशील एवं सीमांत समूहों को दृष्टिगत रखते हुए यह प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पूर्ण विकास  करती है। समावेशी गुणात्मक शिक्षा का परम ध्येय सभी प्रकार के विभेदीकरण को समाप्त करके सामाजिक संगठन का पोषण करना है।         समावेशी शिक्षा की विशेषताएं       ● समावेशी शिक्षा प्रतिभाशाली, कमजोर, औसत हर वर्ग के बालकों के लिए है।       ● समेकित शिक्षा में बालकों के मानसिक स्तर का ख़ास तौर पे ध्यान रखा जाता है।      ● जो छात्र सामान्य रूप से कार्य नही कर पाते जैसे दिव्यांग छात्र, तो उनके लिए इसमे विशेष प्रकार की व्यवस्था होती है।      ● छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का उदय हो जाता है खुद की दिव्यांगता पर दया जैसे भाव नही रहते। वे स्वयं को आम बालकों जैसा ही समझते हैं।      ● यह अपंग बालकों को उनके व्यक्तिक अधिकारों के रूप में स्वीकार करता है।      ● यह विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ता है।      ● समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चों को व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है।      ● समावेशी शिक्षा सम्मान और अनेक अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है।      ● यह प्रत्येक प्रकार तथा श्रेणी के बालकों में आत्मनिर्भरता की भावना का विकास करती है।      ● समावेशी शिक्षा के बल विकलांग बच्चों तक नहीं है बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का बहिष्कार ना करना होना है।        समावेशी शिक्षा का उद्देश्य:      ● दिव्यांग बालकों की विशेष आवश्यकताओं को सर्वप्रथम पहचान करना तथा निर्ध्रारण करना।       ● यह सुनिश्चित करना कि कोई भी बच्चा हो चाहे वह शारीरिक अपंग हो अपंगता से ग्रस्त हो फिर भी उसे शिक्षा के समान अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है।       ● शारीरिक रूप से विक्रितियुक्त बालकों की शिक्षण समस्याओं की जानकारी प्रदान करना।    ● बालकों की असमर्थताओं का पता लगाकर उनको दूर करने का प्रयास करना।    ● बच्चों में आत्मनिर्भर की भावना का विकास करना।    ● विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उनको समाज में मुख्यधारा से जोड़ना      ● समाज में दिव्यांग अत संबंधी फैली बुराइयों को दूर करना          समावेशी शिक्षा की आवश्यकता       समावेशी शिक्षा समाज की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गयी है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विविध प्रकार के विभेदन एवं असमानताओं के कारण हुई रिक्तियों को भरने में सहायक है।समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है:-    ●शिक्षा की सर्वव्यापकता - शिक्षा - विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा को तभी सार्वभौमिक बनाया जा सकता है यदि प्रत्येक बालक के गुणों, स्तर तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा का विस्तार किया जाए।       ●संवैधानिक उत्तरदायित्व का निर्वहन - भारत एक प्रजातांत्रिक गणराज्य है । यहां शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है, जहां जाति, रंग-भेद, धर्म, लिंग भेद के लिए कोई स्थान नही है।       ●राष्ट्र का विकास - देश मि खुशहाली एवं संगठन के लिए विकास एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिसमे सभी नागरिकों के योगदान की जरूरत होती है। यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट(2008) में यह कहा कि प्राथमिक शिक्षा के आशातीत विकास के बावजूद भी 72 मिलियन से अधिक निर्धनता एवम सामाजिक हासिए स्तर पर स्थित बच्चे किसी स्कूल में नामांकन नहीं ले रहे हैं।        ●निर्धनता चक्र की समाप्ति - भारत मे शिक्षा को ज्ञान अर्जन के साथ जीविकोपार्जन का एक उपयुक्त माध्यम समझा जाता है ओर इसकी आवश्यकता भी है। शिक्षित व्यक्ति कोई भी रोजगार करे हस्तकौशल, अर्ध-कौशल अथवा कौशलपूर्ण उसे अपने कर्तव्यों एवम अधिकार का ज्ञान होता है।       ●शिक्षा का स्तर बढ़ाना - समवेशी शिक्षा न केवल 'सबके लिए शिक्षा' बल्कि ' सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर आधारित है। इस शिक्षा प्रणाली में सभी बच्चों के दैहिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के मूलभूत सिद्धान्त पर पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों को लचीला बनाने पर विशेष बल दिया गया है। तो यह स्पष्ट है कि ऐसी शिक्षा प्रणाली से गुणात्मक शिक्षा का विकास होगा।        ●सामाजिक समानता का उपयोग एवं प्राप्ति - सामाजिक समानता का पहला पाठ स्कूलों में पढ़ाया जाता है। समावेशी शिक्षा इस के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थल है।       ●समाज के विकास एवं सशक्तिकरण के लिए - समाज का विकास एवं सशक्तिकरण उसके सुयोग्य एवं शिक्षित नागरिको पर निर्भर करता है। समावेशी शिक्षा इस दिशा में एक दूरदर्शितापूर्ण उपयोगी प्रयास है।       ●अच्छी नागरिकता के उत्तम गुणों का विकास       ●व्यक्तिगत जीवन एवं विकास       ●परिवार के लिए सांत्वना एवं संतोषपूर्ण प्रभाव           समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त       समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त इस प्रकार हैं-       1.बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है अर्थात सबमे सीखने की एक जैसी आदतें हैं।       2.बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है। अर्थात समावेशी शिक्षा कमजोर, प्रतिभाशाली,अमीर गरीब, ऊंच नीच नही देखती है।       3.सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन तथा सभी संसाधन उठाकर स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ाएं।       4.शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।

समावेशी शिक्षा जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, जो सबको समाहित कर ले अर्थात ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। अर्थात हर वर्ग के हर प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में एक विद्यालय में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है।    

समावेशी शिक्षा अथवा समावेशन की उक्ति 'सब के लिए सामान्य स्कूल में शिक्षा' के प्रत्यय को स्पष्ट करती है। यह भावना विश्वासों का एक ऐसा प्रतिमान है जो एक सार्वभौमिक समाज के निर्माण एवं विकास का उद्देश्य रखता है, जिसमे प्रत्येक व्यक्ति के लिए जगह हो।    

समावेशी शिक्षा सामान्य एवं विशिष्ट बच्चों को सब को साथ लेकर, सम्मिलित करते हुए बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए उनके बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त परस्पर सीखने-सिखाने तथा अभियोजन का प्रयास है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी भी भेदभाव व अंतर के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान की जाती है। ताकि समाज के सभी बालको को एक स्तर पर लाया जा सके।   


समावेशी शिक्षा में मुख्य रूप से चार  प्रक्रियाएँ महत्वपूर्ण हैं-    
1 सामान्यीकरण 
2 संस्था रहित शिक्षा 
3 शिक्षा की मुख्यधार 
4 समावेश

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार 'समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी सीखने वाले , बालक हो अथवा युवा, चाहे अशक्त हो या नहीं,सामान्य विद्यालय- पूर्वव्यावस्था विद्यालयों एव सामुदायिक शिक्षा केंद्रों में उपयुक्त सहयोगी सेवाओं के साथ आपस मे मिलजुल कर सीखने में समर्थ हो। उन्होंने आगे स्पष्ट किया है- मुख्यधारा के विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकताओं के बच्चे का अपने अन्य सहपाठियों के साथ शिक्षा ग्रहण करना।   

उमातुलि के अनुसार 
  
“समावेशन एक प्रक्रिया है, जिसमे प्रत्येक विद्यालय को दैहिक, संवेगात्मक, तथा सीखने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संसाधनों का विस्तार करना होता है।”   

प्रोफेसर S.K. Dubey के अनुसार 
  
“शैक्षिक समावेशन एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो छात्रों की योग्यता क्षमता एवं स्थितियों के अनुरूप दी जाती है।” 

श्रीमती R•K• शर्मा के अनुसार  

“शैक्षिक समावेशन एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसके द्वारा प्रतिभाशाली एवं शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों को सूचित किया जाता है।”     

यूनेस्को ने अपने अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन, जेनेवा (2008) में स्पष्ट किया कि "समावेशी शिक्षा अधिगमकर्ताओं के गुणात्मक शिक्षा के मौलिक अधिकार पर आधारित है जो आधारभूत शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर जीवन को समृद्ध बनाती है। अतिसंवेदनशील एवं सीमांत समूहों को दृष्टिगत रखते हुए यह प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पूर्ण विकास  करती है। समावेशी गुणात्मक शिक्षा का परम ध्येय सभी प्रकार के विभेदीकरण को समाप्त करके सामाजिक संगठन का पोषण करना है।   


समावेशी शिक्षा की विशेषताएं   

● समावेशी शिक्षा प्रतिभाशाली, कमजोर, औसत हर वर्ग के बालकों के लिए है।   

● समेकित शिक्षा में बालकों के मानसिक स्तर का खास तौर पे ध्यान रखा जाता है।  

● जो छात्र सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाते जैसे दिव्यांग छात्र, तो उनके लिए इसमें विशेष प्रकार की व्यवस्था होती है।  

● छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का उदय हो जाता है खुद की दिव्यांगता पर दया जैसे भाव नही रहते। वे स्वयं को आम बालकों जैसा ही समझते हैं।  

● यह अपंग बालकों को उनके व्यक्तिक अधिकारों के रूप में स्वीकार करता है।  

● यह विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ता है।  

● समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चों को व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है।  

● समावेशी शिक्षा सम्मान और अनेक अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है।  

● यह प्रत्येक प्रकार तथा श्रेणी के बालकों में आत्मनिर्भरता की भावना का विकास करती है।  

● समावेशी शिक्षा के बल विकलांग बच्चों तक नहीं है बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का बहिष्कार ना करना होना है।  


समावेशी शिक्षा का उद्देश्य:  

● दिव्यांग बालकों की विशेष आवश्यकताओं को सर्वप्रथम पहचान करना तथा निर्ध्रारण करना।   

● यह सुनिश्चित करना कि कोई भी बच्चा हो चाहे वह शारीरिक अपंग हो अपंगता से ग्रस्त हो फिर भी उसे शिक्षा के समान अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है   

● शारीरिक रूप से विक्रितियुक्त बालकों की शिक्षण समस्याओं की जानकारी प्रदान करना

● बालकों की असमर्थताओं का पता लगाकर उनको दूर करने का प्रयास करना

● बच्चों में आत्मनिर्भर की भावना का विकास करना

● विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उनको समाज में मुख्यधारा से जोड़ना  

● समाज में दिव्यांग अत संबंधी फैली बुराइयों को दूर करना    


समावेशी शिक्षा की आवश्यकता   

समावेशी शिक्षा समाज की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गयी है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विविध प्रकार के विभेदन एवं असमानताओं के कारण हुई रिक्तियों को भरने में सहायक है।समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है:-

●शिक्षा की सर्वव्यापकता - शिक्षा - विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा को तभी सार्वभौमिक बनाया जा सकता है यदि प्रत्येक बालक के गुणों, स्तर तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा का विस्तार किया जाए।   

●संवैधानिक उत्तरदायित्व का निर्वहन - भारत एक प्रजातांत्रिक गणराज्य है । यहां शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है, जहां जाति, रंग-भेद, धर्म, लिंग भेद के लिए कोई स्थान नही है।   

●राष्ट्र का विकास - देश मि खुशहाली एवं संगठन के लिए विकास एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिसमे सभी नागरिकों के योगदान की जरूरत होती है। यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट(2008) में यह कहा कि प्राथमिक शिक्षा के आशातीत विकास के बावजूद भी 72 मिलियन से अधिक निर्धनता एवम सामाजिक हासिए स्तर पर स्थित बच्चे किसी स्कूल में नामांकन नहीं ले रहे हैं।
  
●निर्धनता चक्र की समाप्ति - भारत मे शिक्षा को ज्ञान अर्जन के साथ जीविकोपार्जन का एक उपयुक्त माध्यम समझा जाता है ओर इसकी आवश्यकता भी है। शिक्षित व्यक्ति कोई भी रोजगार करे हस्तकौशल, अर्ध-कौशल अथवा कौशलपूर्ण उसे अपने कर्तव्यों एवम अधिकार का ज्ञान होता है।   

●शिक्षा का स्तर बढ़ाना - समवेशी शिक्षा न केवल 'सबके लिए शिक्षा' बल्कि ' सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर आधारित है। इस शिक्षा प्रणाली में सभी बच्चों के दैहिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के मूलभूत सिद्धान्त पर पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों को लचीला बनाने पर विशेष बल दिया गया है। तो यह स्पष्ट है कि ऐसी शिक्षा प्रणाली से गुणात्मक शिक्षा का विकास होगा।    

●सामाजिक समानता का उपयोग एवं प्राप्ति - सामाजिक समानता का पहला पाठ स्कूलों में पढ़ाया जाता है। समावेशी शिक्षा इस के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थल है।   

●समाज के विकास एवं सशक्तिकरण के लिए - समाज का विकास एवं सशक्तिकरण उसके सुयोग्य एवं शिक्षित नागरिको पर निर्भर करता है। समावेशी शिक्षा इस दिशा में एक दूरदर्शितापूर्ण उपयोगी प्रयास है।   

●अच्छी नागरिकता के उत्तम गुणों का विकास   

●व्यक्तिगत जीवन एवं विकास   

●परिवार के लिए सांत्वना एवं संतोषपूर्ण प्रभाव     


समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त   

समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त इस प्रकार हैं-   

➦ बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है अर्थात सबमे सीखने की एक जैसी आदतें हैं।   

➦ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है। अर्थात समावेशी शिक्षा कमजोर, प्रतिभाशाली,अमीर गरीब, ऊंच नीच नही देखती है।   

➦ सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन तथा सभी संसाधन उठाकर स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ाएं।   

➦ शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।