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बुद्धि का अर्थ, परिभाषा, बुद्धि के प्रकार और बुद्धि के सिद्धांत

Intelligence: Meaning, definition, types and principles


बुद्धि का अर्थ

बुद्धि एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग हम अपने आम जीवन की दिनचर्या में करते हैं। लेकिन जितना हम अपने जीवन में बुद्धि के अर्थ को समझते हैं, बाल विकास, शिक्षाशास्त्र और मनोवैज्ञानिक में इसका अर्थ और महत्व कहीं ज्यादा है।

बुद्धि अंग्रेजी शब्द Intelligence का हिन्दी वर्जन है। Intelligence लैटिन भाषा का शब्द है जो कि लैटिन भाषा के दो शब्दों Inter एवं Legere से मिलकर बना है।बुद्धि के अर्थ के बारे में मनोवैज्ञानिकों के बीच मतभेद है, जिससे बुद्धि के किसी एक अर्थ में सहमति नहीं है।

बुद्धि का सरल शब्दों में अर्थ है कि– किसी कार्य, स्थिति में उपलब्ध सभी विकल्पों में से सबसे ज्यादा बेहतर और अनुकूलित विकल्प का चुनाव करके अपने लक्ष्य को हासिल करना।


बुद्धि की परिभाषाएँ

बुद्धि के अर्थ की तरह ही बुद्धि की परिभाषा में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने मत दिए हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषा को वातावरण के साथ समायोजन करने की क्षमता के आधार पर परिभाषित किया गया है। वहीं बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषा को पर्यावरण के साथ समायोजन से न जोड़कर, बुद्धि को सीखने की क्षमता के रूप में और कुछ विद्वानों ने अमूर्त चिन्तन (मन में सोचना) करने की क्षमता के रूप में बुद्धि को परिभाषित किया है। लेकिन बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषा को केवल एक चीज से न जोड़ने के बजाय संयुक्त रूप से जोड़कर परिभाषित किया है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण बुद्धि की परिभाषाओं को नीचे दिया गया है–

वेश्लर के अनुसार बुद्धि की परिभाषा

"बुद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है, जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिन्तन करता है और वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है– वेश्लर"


रॉबिन्सन के अनुसार बुद्धि की परिभाषा

"बुद्धि से तात्पर्य संज्ञानात्मक व्यवहारों के सम्पूर्ण वर्ग से होता है, जो व्यक्ति में सूझ-बूझ द्वारा समस्या का समाधान करने की क्षमता, नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की क्षमता, अमूर्त रूप से सोचने की क्षमता और अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता को दिखलाता है।– रॉबिन्सन"


स्टोडार्ड के अनुसार बुद्धि की परिभाषा

"बुद्धि उन क्रियाओं को समझने की क्षमता है, जिनकी विशेषताएँ कठिनता, जटिलता, अमूर्तता, मितव्ययिता, किसी लक्ष्य के प्रति अनुकूलनशीलता, सामाजिक मान और मौलिकता की उत्पत्ति होती है, और कुछ परिस्थिति में ऐसी क्रियाओं को, जो शक्ति की एकाग्रता तथा सांवेगिक कारकों के प्रति प्रतिरोध दिखलाती हैं, करने की प्रेरणा देती है।– स्टोडार्ड"


बुद्धि की विशेषताएँ एवं तथ्य

यहाँ पर बुद्धि की प्रमुख विशेषताओं के बारे में बताया गया है, जो कि निम्नलिखित हैं–

💎 बुद्धि मनुष्य की कई विशेषताओं और क्षमताओं को दर्शाता है।

💎 बुद्धि के सहारे ही व्यक्ति किसी समस्या के समाधान तक पहुँचता या पहुँचने का प्रयास करता है।

💎 बुद्धि व्यक्ति को वातावरण के समायोजन करने में मदद करती है।

💎 बुद्धि के सहारे ही व्यक्ति अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसके अनुरूप कार्य करता है, और निर्णय लेता है।

💎 बुद्धि से व्यक्ति को विवेकशील चिन्तन तथा अर्मूत चिन्तन करने में भी मदद मिलती है।

💎 बुद्धि व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की बातों को सीखने में सहायता प्रदान करती है।

💎 मनुष्य की बुद्धि पर उसके आस-पास के वातावरण का अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रभाव पड़ता है।

बुद्धि पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है । विभिन्न शोधों के निष्कर्षों से पता चलता है कि अच्छे वातावरण में पोषित बच्चों की बुद्धि लब्धि अधिक होती है।


बुद्धि के प्रकार

थॉर्नडाइक एवं गैरेट ने बुद्धि को तीन प्रकार में बाँटा है जो कि निम्नलिखित हैं–

1. अमूर्त बुद्धि

अमूर्त बुद्धि व्यक्ति की ऐसी बौद्धिक योग्यता जिसकी मदद से गणित, शाब्दिक, या सांकेतिक समस्याओं का समाधान किया जाता है।

अमूर्त बुद्धि का प्रयोग करके हम पढ़ने, लिखने एवं तार्किक प्रश्नों में करते हैं। कवि, साहित्यकार, चित्रकार आदि लोग अमूर्त बुद्धि से ही अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।


2. मूर्त या स्थूल बुद्धि

मूर्त या स्थूल बुद्धि के द्वारा व्यक्ति विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का व्यावहारिक एवं उत्तम प्रयोग करने की क्षमता अर्जित करता है।

मूर्त बुद्धि को व्यावहारिक यान्त्रिक बुद्धि भी कहा जाता है। हम अपने दैनिक जीवन के ज्यादातर कार्य मूर्त बुद्धि की ही सहायता से करते हैं।


3. सामाजिक बुद्धि

सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य उन बौद्धिक योग्यताओं से जिसका उपयोग कर व्यक्ति सामाजिक परिवेश के साथ समायोजन स्थापित करने में करता है।


बुद्धि के सिद्धांत

मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के संगठन के विषय में निम्नलिखित सिद्धांतों को स्वीकार किया है-

💖 बिने का एक कारक सिद्धांत

💖 द्वितत्व या द्विकारक सिद्धांत

💖 त्रिकारक बुद्धि सिद्धांत 

💖 बुद्धि का बहुखण्ड का सिद्धांत

💖 गिलफोर्ड का बुद्धि का सिद्धांत

💖 गार्डनर का बुद्धि का सिद्धांत

💖 केटल का बुद्धि का सिद्धांत

💖 थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धांत

💖 थाॅमसन का प्रतिदर्श सिद्धांत

💖 बर्ट तथा वर्नन का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धांत 


1. बिने का एक कारक सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने ने 1905 में किया। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इस सिद्धांत का समर्थन किया। इस सिद्धांत के अनुसार ”बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।“ इस सिद्धांत के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्योें को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है। उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने के लिये अग्रसित करती है। 

इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। 

टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है। 


2. द्वितत्व या द्विकारक सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो व्यावहारिक शक्तियां के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं जिनमें एक को उन्होंने सामान्य बुद्धि तथा दूसरे कारक को विशिष्ट बुद्धि कहा है। सामान्य कारक या से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं। सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। 

बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है। व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक अतः भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पाई जाती हैं। बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशतः अर्जित होते हैं। 

बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धांत के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं। जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं। जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयों को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है। 

अतः इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति की किसी विशेष विषय में दक्षता उसकी विशिष्ट योग्यताओं के अतिरिक्त सामान्य योग्यताओं पर निर्भर है। 


3. त्रिकारक बुद्धि सिद्धांत 

स्पीयरमेन ने 1911 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक या तीन कारक बुद्धि सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि के जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धांत में जोड़ा उसे उन्होंने समूह कारक या ग्रुप फेक्टर कहा। अतः बुद्धि के इस सिद्धांत में तीन कारक 1. सामान्य कारक 2. विशिष्ट कारक तथा 3. समूह कारक सम्मिलित किये गये हैं। 

स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है। 

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धांत में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।


4. बुद्धि का बहुखण्ड का सिद्धांत 

थस्र्टन के द्वारा दिया गया यह सिद्धांत विस्तृत सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित है थस्र्टन के अनुसार बुद्धि कई प्रारंभिक योग्यताओं से मिलकर बनी होती है उन्होनें बुद्धि के स्वरूप को जानने के लिये विश्वविद्यालय के छात्रों पर 56 मनोवैज्ञानिक परीक्षण करने के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला कि बुद्धि सात योग्यताओं का मिश्रण है-

संख्या योग्यता

शाब्दिक योग्यता

स्थानिक योग्यता

शब्द प्रभाव योग्यता

तार्किक योग्यता

स्मृति योग्यता

प्रत्यक्षीकरण योग्यता

ये सभी सात क्षमतायें अथवा योग्यतायें एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं। अर्थात् उनमें सह संबंध नहीं है। थस्र्टन का मत है कि किसी विशेष कार्य करने में जैसे गणित के एक कठिन प्रश्न को समझना, साहित्य का अध्ययन करना आदि में उपर्युक्त मानसिक योग्यताओं के संयोजन की आवश्यकता होती हैं ये मानसिक योग्यतायें प्रारंभिक व सामान्य हैं क्योंकि उनकी आवश्यकता किसी न किसी मात्रा में सभी जटिल बौद्धिक कार्यों में पड़ती है।


5. गिलफोर्ड का बुद्धि का सिद्धांत 

गिल्फोंर्ड के सिद्धांत को त्रिविमीय सिद्धांत या बुद्धि संरचना का सिद्धांत भी कहा जाता है। गिलफोर्ड का विचार था कि बुद्धि के सभी तत्वों को तीन विभागों में बांटा जा सकता है जैसे -

संक्रिया

विषय वस्तु

उत्पादन

1) संक्रिया - संक्रिया से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले मानसिक प्रक्रिया के स्वरूप से होता है। किसी दिये गये कार्य को करने में व्यक्ति द्वारा की गई मानसिक क्रियाओं का स्वरूप क्या है। गिलफोर्ड ने संक्रिया के आधार पर मानसिक क्षमताओं को पांच भागों में बांटा है -

मूल्यांकन

अभिसारी चिन्तन

अपसारी चिन्तन

स्मृति

संज्ञान

उदाहरण तौर पर मान लिया जाये कि किसी व्यक्ति को सहशिक्षा पर उसके गुण व दोष बताते हुये एक लेख लिखने को कहा जाता है तब उपयुक्त पॉच मानसिक क्रियाओं में मूल्यांकन की संक्रिया होते पायी जायेगी। उसी तरह किसी व्यक्ति को ईट का असाधारण प्रयोग बताने को कहा जायेगा तब निश्चित रूप से अपसारी चिन्तन की संक्रिया का उपयोग किया जावेगा।


2) विषय-वस्तु - इस विमा का तात्पर्य उस क्षेत्र से होता है जिसमें सूचनाओं के आधार पर संक्रियाये की जाती है गिलफोर्ड के अनुसार इन सूचनाओं को चार भागों में बॉंटा गया है -

आकृति अन्तर्वस्तु

प्रतिकात्मक अन्तर्वस्तु

शाब्दिक अन्तर्वस्तु

व्यवहारिक अन्तर्वस्तु

उदाहरण के तौर पर व्यक्ति को दी गयी सूचनाओं के आधार पर कोई संक्रिया करना हो जो शब्दिक ना होकर चित्र के रूप में हो ऐसी परिस्थिति में विषय-वस्तु का स्परूप आकृतिक कहा जायेगा।


3) उत्पादन - उत्पादन का अर्थ किसी प्रकार की विषय-वस्तु द्वारा की गयी संक्रिया के परिणाम से होता है इस परिणाम को गिलफोर्ड ने 6 भागों में बॉंटा है -

इकाई

वर्ग

सम्बन्ध

पद्धतियॉं

रूपांतरण

आशय

गिलफोर्ड ने अपने सिद्धांत में बुद्धि की व्याख्या तीन विमाओं के आधार पर की है और प्रत्येक विमा के कई कारक हैं। संक्रिया बिमा के 5, विषय वस्तु विमा के 4 कारक व उत्पादन विमा के 6 कारक हैं इस तरह बुद्धि के कुल मिलकर (5x4x6=120) कारक होते हैं।


6. गार्डनर का बुद्धि का सिद्धांत 

गार्डनर के सिद्धांत को बहुबुद्धि का सिद्धांत कहा गया है। गार्डनर के अनुसार बुद्धि का स्वरूप एकांकी न होकर बहुकारकीय होती है उन्होंने बताया कि सामान्य बुद्धि में 6 तरह की क्षमताएं या बुद्धि सम्मिलित होती है। यह क्षमताए एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं। तथा मस्तिष्क में प्रत्येक के संचालन के नियम अलग-अलग हैं। यह 6 प्रकार की बुद्धि हैं -

1. भाषायी बुद्धि - इस तरह की बुद्धि में वाक्यों या शब्दों की बोध क्षमता, शब्दावली, शब्दों के बीच संबंधो को पहचानने की क्षमता आदि सम्मिलित होती है। ऐसे व्यक्ति जिनमें भाषा के विभिन्न प्रयोगों के संबंध में संवेदनशीलता होती है। जैसे - कवि, पत्रकार

2. तार्किक गणितीय बुद्धि- इस बुद्धि में तर्क करने की क्षमता, गणितीय समस्याओं का समाधान करने की क्षमता, अंको के संबंधों को पहचानने की क्षमता आदि सम्मिलित होती है। ऐसी बुद्धि में तर्क की लम्बी श्रंखलाओं का उपयोग करने की क्षमता होती है। जैसे - वैज्ञानिक, गणितज्ञ।

3. स्थानिक बुद्धि - इसमें स्थानिक चित्र को मानसिक रूप से परिवर्तन करने की क्षमता, स्थानिक कल्पना शक्ति आदि आते हैं। अर्थात् संसार को सही ढंग से देखने की क्षमता व अपने प्रत्यक्षीकरण के आधार पर संसार के पक्षों का पुननिर्माण करना, परिवर्तित करना आदि सम्मिलित हैं। जैसे - मूर्तिकार, जहाज चालक ।

4. शारीरिक गतिक बुद्धि - इस तरह की बुद्धि में अपने शारीरिक गति पर नियंत्रण रखने की क्षमता, वस्तुओं को सही ढंग से घुमाने व उनका उपयोग करने की क्षमता सम्मिलित है। इस तरह की बुद्धि नर्तकी व व्यायामी में अधिकतर होती है। जिसमें अपने शरीर की गति पर पर्याप्त नियंत्रण रहता है। साथ ही साथ इस तरह की बुद्धि की आवश्यकता क्रिकेट खिलाड़ी, टेनिस खिलाड़ी, न्यूरों सर्जन, शिल्पकारों आदि में अधिक होता है क्योंकि इन्हें वस्तुओं का प्रयोग प्रवीणतापूर्वक करना होता है।

5. संगीतिक बुद्धि - इसमें लय व ताल को प्रत्यक्षण करने की क्षमता सम्मिलित होती है। अर्थात लय, ताल, गायन, के प्रति उतार-चढ़ाव की संवेदनशीलता आदि इस प्रकार की बुद्धि का भाग हैं। यह बुद्धि संगीत देने वालों व गीत गाने वालों में अधिक होती है।

6. व्यक्तिगत बुद्धि - व्यक्तिगत बुद्धि के दो तत्व होते हैं जो एक दूसरे से अलग-अलग होते हैं।

गार्डनर के अनुसार प्रत्येक सामान्य व्यक्ति में यह 6 बुद्धि होती हैं। परन्तु कुछ विशेष कारणों जैसे अनुवांशिकता या प्रशिक्षण के कारण किसी व्यक्ति में कोई बुद्धि अधिक विकसित हो जाती है। ये सभी 6 प्रकार की बुद्धि आपस में अन्त: क्रिया करती हैं फिर भी प्रत्येक बुद्धि स्वतंत्र रूप में कार्य करती है। मस्तिष्क में प्रत्येक बुद्धि अपने नियमों व कार्य विधि द्वारा संचालित होती है इसलिये यदि खास तरह की मस्तिष्क क्षति होती है तो एक ही तरह की बुद्धि क्षतिग्रस्त होगी पर उसका प्रभाव दूसरे तरह की बुद्धि पर नहीं पड़ेगा।

गार्डनर के इस सिद्धांत का आशय यह है कि एक छात्र जिसकी स्कूल व कॉलेज की उपलब्धि काफी उत्कृष्ट थी फिर भी उसे जिंदगी में असफलता हाथ लगती है वहीं दूसरा छात्र जिसका स्कूल व कॉलेज की उपलब्धि निम्न स्तर की होने के बाद उसने बहुत सफलता अर्जित की इसका स्पष्ट कारण यह है कि पहले छात्र में व्यक्तिगत बुद्धि की कमी थी व दूसरे छात्र में अधिकता।


7. केटल का बुद्धि का सिद्धांत 

रेमण्ड वी. केटल (1971) ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं-फ्लूड तथा क्रिस्टेलाईज्ड। उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है। क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है। 

फ्लूड सामान्य योग्यता को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है। जो जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है। 

केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंशाानुक्रम से सम्बंधित है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।

केटल ने बुद्धि के दो तत्व बताये हैं -

अनिश्चित बुद्धि, जिसे GI कहते हैं

निश्चित बुद्धि, जिसे GC कहते है

अनिश्चित बुद्धि वह है जिसके विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है फलत: यह बुद्धि प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग होती है। निश्चित बुद्धि के विकास पर अनुभवों, शिक्षा, संस्कृति यानि वातावरण का प्रभाव पड़ता है यह उन सभी व्यक्तियों की एक सी होती है जो एक समान वातावरण में रहते हैं। 

केटल के अनुसार इन दो तत्वों को भी तत्व विश्लेषण द्वारा अनेक तत्वों में विभाजित किया जा सकता है आजकल इस सिद्धांत पर आधारित कई अनुसंधान हो रहे हैं और अनिश्चित व निश्चित बुद्धि के तत्वों को खोजा जा रहा है।


8. थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धांत 

थार्नडाइक ने अपने सिद्धांत में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। 

थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धांतों में प्रस्तुत सामान्य कारकों की आलोचना की और अपने सिद्धांत में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों तथा उभयनिष्ठ कारकों का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे-शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं। उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है। 

थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है। 

जैसे उदाहरण के लिए किसी विद्यालय के 100 छात्रों को दो परीक्षण A तथा B दिये गये और उनका सहसंबंध ज्ञात किया। फिर उन्हें । तथा C परीक्षण देकर उनका सहसंबंध ज्ञात किया। पहले दो परीक्षणों में A तथा B में अधिक सहसंबंध पाया गया जो इस बात को प्रमाणित करता है कि A तथा B परीक्षणों की अपेक्षाकृत A तथा B परीक्षणों मानसिक योग्यताओं में उभयनिष्ठ कारक अधिक निहित है। 

उनके अनुसार ये उभयनिष्ठ कुछ अंशों में समस्त मानसिक क्रियाओं में पाए जाते हैं।


9. थाॅमसन का प्रतिदर्श सिद्धांत 

थाॅमसन ने बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उनके मतानुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धांत में उन्होंने सामान्य कारकों की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। 

थाॅमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।


10. बर्ट तथा वर्नन का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धांत 

बर्ट एवं वर्नन (1965) ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि सिद्धांतों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धांत माना जाता है। इस सिद्धांत में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तरों पर विभिक्त किया

सामान्य मानसिक योग्यता 

विशिष्ट मानसिक योग्यता 

सामान्य मानसिक योग्यताओं में भी योग्यताओं को उन्होंने स्तरों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया। पहले वर्ग में उन्होंने क्रियात्मक यांत्रिक दैशिक एवं शारीरिक योग्यताओं को रखा है। इस मुख्य वर्ग को उन्होंने k.m. नाम दिया। योग्यताओं के दूसरे समूह में उन्होंने शाब्दिक आंकिक तथा शैक्षिक योग्यताओं को रखा है और इस समूह को उन्होंने अण्मकण् नाम दिया है। अंतिम स्तर पर उन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यताओं को रखा जिनका सम्बंध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है। 

इस सिद्धांत की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कई मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।

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