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कोल्हापुरी चप्पल को मिला GI टैग

kolhapuri chappal gets gi tag know the specialities


भारत में चमड़े से तो कई चप्पलें बनती हैं, लेकिन कोल्हापुरी चप्पल कई वर्षों से देश-विदेश में मशहूर है। कोल्हापुरी चप्पलों की उत्पत्ति कोल्हापुर से हुई थी। बाद में कई जगह इन चप्पलों का उत्पादन होने लगा, जिसकी वजह से यह बहुत आम हो गई और लोगों को आसानी से मिलने लगी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पेटेंट, डिजाइन और ट्रेड मार्क के महानिदेशक ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ राज्यों को कोल्हापुरी चप्पल बनाने का जीआई टैग दे दिया है। 


इन इलाकों में बनेंगी कोल्हापुरी चप्पलें

यानी अब सिर्फ कर्नाटक और महाराष्ट्र के आठ इलाकों में बनी कोल्हापुरी चप्पलों को इसका टैग मिलेगा। अगर किसी अन्य जगह पर ये चप्पल बनी है तो उन्हें कोल्हापुरी नहीं कहा जा सकेगा। जीआई टैग के माध्यम से महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सोलापुर, संगली और सतारा इलाकों के लिए और कर्नाटक के धारवाड़, बगलकोट, बीजापुर और बेलगाम इलाकों को देश और विदेश के बाजारों में कोल्हापुरी चप्पलें बेचने में आसानी होगी। 


12वीं सदी में भी बनती थी कोल्हापुरी चप्पलें 

भारत में कोल्हापुरी चप्पलें 12वीं सदी में भी बनती थी, लेकिन 20वीं सदी में कोल्हापुरी ब्रांड विकसित हुआ था। छत्रपति शाहू महाराज (1874-1922) ने कोल्हापुरी चप्पलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया था और अपने शासन में कोल्हापुर में 29 टैनिंग सेंटर खोले थे। 


इन उत्पादों को भी मिल चुका है जीआई टैग 

बता दें कि इससे पहले चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। सबसे पहले साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को जीआई टैग मिला था।