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जानिए भारत ने चांद का दक्षिणी हिस्सा ही क्यों चुना है?

Know why India has chosen the southern part of the moon


चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया है भारत के इस सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान को आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। अभी तक सब कुछ योजना के मुताबिक ही चल रहा है रॉकेट ने चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा दिया है


चंद्रयान 2 क्या है?


3.8 टन का चंद्रयान-2 एक अंतरिक्ष यान है इसे ले जाने वाले रॉकेट को ‘बाहुबली’ उपनाम दिया गया है इसके तीन मॉड्यूल्स (सबसे अहम हिस्से) हैं - लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर. इसके लैंडर का नाम है- विक्रम और रोवर का नाम है- प्रज्ञान इस अभियान के तहत लैंडर रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा और इसके जरिए जरूरी अध्ययन किए जाएंगे वहीं लैंडर और ऑर्बिटर के माध्यम से इसरो रोवर के साथ संपर्क में रहेगा

चंद्रयान-2 दस साल के भीतर भारत का चंद्रमा पर भेजा जाने वाला दूसरा अभियान है इससे पहले भारत ने अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में भेजा था चंद्रयान-2 की सफलता के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद धरती के इस उपग्रह पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा इस पूरे अभियान की लागत करीब 1000 करोड़ रु बताई जा रही है


दक्षिणी ध्रुव ही क्यों?

अब अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला तो चंद्रयान-2 अभियान के तहत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा और यह काम होगा सितंबर के पहले हफ्ते में अब सवाल उठता है कि यही इलाका क्यों

इस इलाके में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसलिए है कि इसके बारे में अब तक बहुत थोड़ी जानकारी है चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की थोड़ी ही रोशनी पहुंचती है चंद्रमा की धुरी के थोड़े से झुकाव के चलते इसके कुछ इलाके तो हमेशा ही छाया में रहते हैं यहाँ पर बहुत विशाल गड्ढे हैं जिन्हें कोल्ड ट्रैप्स कहा जाता है इनमें तापमान शून्य से 200 डिग्री तक नीचे जा सकता है इसके चलते न सिर्फ पानी बल्कि कई दूसरे तत्व भी जमी हुई अवस्था में पहुंच सकते हैं इस तापमान में कई गैसें भी जम जाती हैं

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन कोल्ड ट्रैप्स में मौजूद तत्व तीन अरब साल से जमी हुई अवस्था में हो सकते हैं उनके मुताबिक इनसे हमारे सौरमंडल के शुरुआती दौर के बारे में कुछ अहम जानकारियां हासिल हो सकती हैं इन जानकारियों से ‘जाएंट इंपैक्ट हाइपोथीसिस’ की पुष्टि हो सकती है इस अवधारणा के मुताबिक करीब 4.4 अरब साल पहले पृथ्वी से इसके ही आकार का एक विशाल पिंड टकराया था जिससे चंद्रमा वजूद में आया

इस पिंड को वैज्ञानिक थिया कहते हैं थिया का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में मौजूद सीलीन की मां के नाम पर रखा गया था सीलीन को चांद की मां कहा जाता है माना जाता है कि टक्कर होने के बाद थिया और धरती के टुकड़े एक दूसरे में मिल गए और उनके मिलने से चांद का जन्म हुआ

जांच-पड़ताल के लिए प्रज्ञान अपने साथ कई तरह के स्पेक्ट्रोमीटर लेकर जा रहा है। ये उपकरण यह पता लगा सकते हैं कि कौन सा पदार्थ कौन-कौन से तत्वों से मिलकर बना है। प्रज्ञान में कई अत्याधुनिक सिंथेटिक अपरचर रडार हैं जो किसी चट्टान के कई मीटर भीतर झांककर उसमें पानी की मौजूदगी का पता लगा सकते हैं चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी के अणु होने की जानकारी दी थी। अगर चांद पर पर्याप्त पानी का पता चलता है तो एक दिन वहां मानव बस्तियां भी बनाई जा सकती हैं


चुनौतियां

हालांकि चांद के दक्षिणी हिस्से पर जाने की अपनी चुनौतियां हैं जैसा कि पहले जिक्र हुआ कि इस इलाके में सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है। इसके चलते लैंडर और रोवर पर लगे सौर पैनलों की चार्जिंग बहुत मुश्किल हो जाएगी ऐसी कई दुश्वारियों के चलते ही चंद्रयान-2 को भारत का अब तक का सबसे जटिल मिशन कहा जा रहा है