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देश मंदी की ओर

Economic Slowdown and Recession (Author: R. Ranjan)


भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार टूट रहा है। बेरोजगारी दर बीते 45 सालों में सर्वोच्च स्तर पर है। जीडीपी की दर 7 सालों में सबसे कम होकर सिर्फ 5 प्रतिशत हो गई है। पिछली 25 तिमाहियों में सबसे धीमा तिमाही विकास रहा और ये मोदी सरकार के दौर के दौरान की सबसे कम वृद्धि है। उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है। देश मंदी की तरफ बढ़ रहा है भारत में धीमी गति से विकास के कई कारण हैं जिनमे दुनिया की सभी अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती एक बड़ा कारण है।

सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की है, जहाँ वृद्धि दर 0.6 फीसदी पर आ गई है। इससे साफ है कि हमारी अर्थव्यवस्था सरकार की गलतियों से उबर नहीं पाई है। जीएसटी को जल्दीबाजी में लागू किया गया। घरेलू मांगों में गिरावट आ रही है। खपत वृद्धि दर पिछले 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। टैक्स को थोड़ा जटिल बना दिया गया। निवेशकों में निराशा है।'' 

''ऑटोमोबिल सेक्टर में 3.5 लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग असंगठित क्षेत्र में भी बेरोजगार हुए हैं। ग्रामीण भारत की हालत बहुत ही खराब है। किसानों को उचित कीमत नहीं मिल रही है और ग्रामीण आय में भी लगातार गिरावट आ रही है।

हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की रफ़्तार में सुस्ती जरूर आयी है लेकिन इसे मंदी नहीं कहेंगे। हम मंदी की तरफ बढ़ जरूर रहे है "मंदी या रिसेशन का मतलब लगातार दो तिमाही में नकारात्मक विकास है। भारत की इकॉनमी में सुस्ती आयी है साल की पहली तिमाही में विकास दर में गिरावट से ये मतलब नहीं निकलना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गयी है। दूसरी तिमाही तक विकास दर में वृद्धि नजर आनी चाहिए अगर दूसरी तिमाही में भी इसी तरह विकास दर नीचे रही तब देश मे मंदी दस्तक दे देगी। हालांकि अभी वैश्विक स्तर पर भी कई देशों के भी हालत कुछ इस तरह ही है। हालात और खराब हो इससे पहले ही सरकार को सम्भल जाना चाहिए।

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