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भारत में छात्र आंदोलनों का संक्षिप्त इतिहास

Brief history of student movements in India


मनुष्य और समाज दोनों परस्पर पूरक हैं और छात्र इसका एक अभिन्न अंग हैं। एक के बिना दूसरे का स्थायित्व संभव नहीं है। छात्र शक्ति, समाज को सुधारने और उसे मजबूत करने वाली घटकों में से एक है। इसलिए कहा जाता है की युवा देश के रीढ़ हैं, जिसके कंधे पर देश का भविष्य टिका होता है। स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भारत में जितने भी परिवर्तनकारी सामाजिक आंदोलन हुए, उनमें छात्रों की भूमिका बहुत अहम रही है। इस लेख में हम भारत में छात्र आंदोलनों का संक्षिप्त इतिहास दे रहे हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।


भारत में छात्र आंदोलनों का संक्षिप्त इतिहास

भारत में छात्र आंदोलन तीन व्यापक चरणों में अध्ययन किया जा सकता है, जिनकी नीचे चर्चा की गई है:

स्वतंत्रता के पूर्व की अवधि

🔯 1848 में दादाभाई नौरोजी ने स्टूडेंट्स साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी (Student’s scientific and historic society) की स्थापना छात्र मंच के रूप में की थी। इस मंच को भारत में छात्र आंदोलन का सूत्र-धार माना जाता है।

🔯 1913 में भारतीय इतिहास में पहली बार छात्रों ने किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज, लाहौर (King Edward Medical College, Lahore) में अंग्रेजी छात्रों और भारतीयों के बीच अकादमिक भेदभाव के विरोध में हड़ताल किया था।

🔯 छात्र आंदोलन का दायरा 1906 और 1918 के बीच और भी बढ़ गया, जब 184 लोगों में  68 छात्र क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न पाए गए थे।

🔯 स्वदेशी आन्दोलन (1905): इस आन्दोलन ने भारतीय छात्रो को एकरूपता प्रदान की थी और छात्र शक्ति को एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण दिया था। भारतीय छात्रो में एकरूपता दिखाने के लिए कॉलेजों के साथ ही ब्रिटिश सामान, छात्र क्लब का सामूहिक बहिष्कार कर दिया था।

🔯 1912 में, अहमदाबाद के अखिल भारतीय कॉलेज छात्र सम्मेलन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करने की छात्र प्रतिबद्धता का शपथ लिया और 'पहले चरखा स्वराज और फिर शिक्षा' का नारा दिया।

🔯 भारतीय ईसाई आंदोलन (एससीएम) को 1912 में पश्चिमी औपनिवेशवाद के खिलाफ सामाजिक वास्तविकताओं के माध्यम से ईसाई धर्म के छात्रों को उन्मुख करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

🔯 1919 में, असहयोग आंदोलन के दौरान स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर भारतीय छात्रों ने इस आन्दोलन में तीव्रता प्रदान की थी।

🔯 हिंदू छात्र संघ (एचएसएफ) 1936 में आरएसएस के विचारधारा के साथ शुरू हुआ था। छात्र की यह शाखा सीधे अपनी स्थापना से हिन्दू युवाओं की भावनाओं की वकालत करता था। इस छात्र संगठन ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया था।

🔯 1936 में, पहला अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन लखनऊ में आयोजित किया गया था जिसमें पंजाब, यूपी, सीपी, बंगाल, असम, बिहार और उड़ीसा के 210 स्थानीय और 11 प्रांतीय संगठनों के 986 छात्र प्रतिनिधि शामिल थे।

🔯 मुस्लिम लीग ने 1937 में मुस्लिम छात्रों की शिकायतों को हल करने के लिए अखिल भारतीय मुस्लिम छात्र संघ (All India Muslim Students Federation) की स्थापना की थी और इसी छात्र संगठन द्वारा मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग को नई दिशा प्रदान करना चाहता था। इस छात्र संगठन ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लिया था।

🔯 असहयोग आंदोलन के बाद, भारत छोड़ो आंदोलन को भारतीय छात्रों का समर्थन मिला। आंदोलन के दौरान, छात्रों ने ज्यादातर कॉलेजों को बंद करने और नेतृत्व की अधिकांश जिम्मेदारियों को शामिल करने का प्रबंधन किया और भूमिगत नेताओं और आंदोलन के बीच लिंक प्रदान किया।

🔯 शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन एक ऐसा राजनीतिक दल था जो अनुसूचित जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व करता था।  इसकी स्थापना बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने 1942 में दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए की थी।

🔯 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की स्थापना 1949 में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के कार्य की दिशा में छात्र शक्ति को जुटाने के लिए की गयी थी।

🔯 अखिल भारतीय कैथोलिक यूनिवर्सिटी फेडरेशन (एआईसीयूएफ) को 1949 में, कैथोलिक चर्च के छात्रों के लिए सामाजिकता के माध्यम से आस्था उन्मुखीकरण प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।

🔯 1950 से पहले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की छात्र सक्रियता एआईसीसी की युवा शाखा द्वारा की जाती थी।


स्वतंत्रता के बाद

स्वतंत्रता के बाद, छात्र आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में बदलाव आया है क्योंकि यह तर्कसंगत या व्यापक विचारधारात्मक प्रश्नों के बजाय विश्वविद्यालय के मुद्दों या स्थानीय राजनीतिक संघर्षों पर स्थानीय स्तर पर राजनेताओ के राजनीती का एक हथियार बन कर रह गया। लेकिन कुछ मामलो में छात्रों की उपस्तिथि ने क्रांति ला दी थी जैसे की चिपको आन्दोलन, आपातकाल के दौरान हुए आन्दोलन, मंडल विरोधी आन्दोलन इत्यादि।

🔯 अखिल भारतीय युवा संघ (All India Youth Federation) की स्थापना 1959 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने युवा पीढ़ी के प्रगतिशील और लोकतांत्रिक खंड के लिए एकजुट मंच के रूप में की थी।

🔯 नक्सलवादी आंदोलन: यह 1967 में चरु मजूमदार, कानू सान्याल, और जंगल संथाल द्वारा सामंती शोषण के विरोध में शुरू किया गया था। इसके बाद छात्रो की एकरूपता ने इसे और भी क्रांतिकारी बना दिया था जिसका आज भी बिगड़ा रूप देखने को मिलता है।

🔯 चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में दशौली ग्राम स्वराज संघ ने 1960 में वन आधारित छोटे पैमाने पर उद्योग स्थापित करके अपने गृहनगर के पास स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए गोपेश्वर में एक अभियान शुरू हुआ था।

🔯 1961 में गणराज्य युवक संगति ने आजादी के बाद पहला जातिवाद के खिलाफ और अनुसूचित जातियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए दलित आंदोलन शुरू किया था।

🔯 भारतीय छात्र संघ (Student Federation of India): 1970 में सीपीआई (एम) ने छात्रों को एक लोकतांत्रिक और प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली से लड़ने के लिए, छात्र समुदाय के उन्नति और सुधार के लिए स्थापना की।

🔯 नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI): इसकी स्थापना इंदिरा गांधी ने 9 अप्रैल 1971 को एक राष्ट्रीय छात्र संगठन बनाने के लिए केरल स्टूडेंट्स यूनियन और पश्चिम बंगाल राज्य छत्र परिषद के विलय के बाद की थी।

🔯 चिपको आन्दोलन (1973 से शुरू हुआ): यह एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। आन्दोलन की शुरुवात भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी। इस आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने और छात्रो ने भारी संख्या में भाग लिया था।

🔯 विदर्भ रिपब्लिकन छात्र संघ (Vidharaba Republican Students Federation) की स्थापना, भगवान बुद्ध द्वारा शुरू किए गए मार्ग का अनुसरण करने और अम्बेडकर द्वारा अपनाये नैतिकता को अपनाने तथा उसका प्रचार करने हेतु किया गया था।

🔯 आपातकाल के दौरान आंदोलन: 1974 में छात्र आन्दोलन आपातकाल के विरोध में शुरू हुआ। इसी दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और समाजवादी छात्रो ने पहली बार एक जूट हो कर छात्र संघर्ष समिति का गठन कर आपातकाल का विरोध किया। जिसके लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष चुने गए थे और सुशील कुमार मोदी महासचिव चुने गए थे। आपातकाल के विरोध प्रदर्शन के दौरान बहुत से छात्रो को बेरहमी से पीटा गया और उनको जेल में बंद कर दिया गया था। नेतृत्व विहीन आपातकाल आन्दोलन को नई उर्जा के लिया जय प्रकाश नारायण को छात्रो द्वारा आमंत्रित किया गया और उसके बाद उन्होंने 'सम्पूर्ण क्रांति' का नारा दिया।

🔯 मंडल विरोधी आन्दोलन: यह आन्दोलन सवर्ण वर्ग के छात्रों द्वारा शुरू किया गया था जब वीपी सिंह सरकार ने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की थी। यह छात्र आन्दोलन बहुत ही संगठित तरह से आयोजित किया गया था। आन्दोलन का मुख्य मांग जाति पर आरक्षण को हटाने और आर्थिक विचारों के आधार पर आरक्षण का समर्थन करना था।