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कोरोना वायरस का इतिहास, वर्तमान, भविष्य। क्या वैक्सीन सुरक्षित है? कौन सा वैक्सीन ज्यादा प्रभावी है?

Corona virus why, how long? Is the vaccine safe? Which vaccine is better?



कोरोना वायरस का इतिहास 

वास्तव में कोरोना वायरस कोई नया वायरस ना होकर पहले से ज्ञात एक प्रकार का इंफ्यूएंजा वायरस है, इसी कारण इसके लक्षण शर्दी-जुकाम-बुखार-निमोनिया बाले होते है। इसकी सबसे पहले पहचान स्कॉटलैंड की महिला वैज्ञानिक जून अलमेडा ने 1964 में की थी, और इसका नाम कोरोना वायरस दिया था, किन्तु तब इसका प्रभाव इतना नहीं था। 

कोरोना का ही एक और संस्कण मर्स:- MERS (Middle East respiratory syndrome) / मिडिल ईस्ट श्वसन सिंड्रोम, कोरोनावायरस की वजह से होने वाला वायरल श्वसन रोग है, जो 2012 में पहली बार सऊदी अरब में पहचाना गया था। और इसके बाद 2015 में दक्षिण कोरिया में। यह भी कोरोना वायरस की ही फैमिली का वायरस है और उसी की तरह चमगादड़ों के जरिए पनपा बताया जाता है। मनुष्यों से पहले इसने ऊंटों को प्रभावित किया था। कोरोना फैमिली के पहचाने गए वायरसों में यह सबसे खतरनाक रहा क्योंकि इससे पीड़ितों में मृत्यु दर 30 से 40 फीसदी तक रही। 

SARS (Respiratory Syndrome severe acute) वायरस भी कोरोना वायरस की ही फैमिली परिवार का ही एक सदस्य है। SARS वायरस का प्रकोप 2002-2003 में चीन में पहली बार हुआ था तब चीन में 349 और हांगकांग में 299 लोगों की मौत इस वायरस के वजह से हुई थी। 

कुछ मामलों में यह वायरस सामान्य सर्दी का कारण बनते है लेकिन ज्यादातर मामलों में लोग सांस की गंभीर बीमारियों के शिकार होते है जैसे की SARS और MERS वायरस के संक्रमण से होते है। 


कोरोना का वर्तमान स्वरूप 

7 नवंबर 2019, पूरी दुनियाँ अपने रोजमर्रा के कार्यो में व्यस्त थी लेकिन चीन के हुबेई प्रांत में एक 55 वर्षीय व्यक्ति एक वायरस के संक्रमण से पीड़ित था। उस समय तक किसी को आभास भी नही था कि यह वायरस पूरे विश्व के लिए कितना घातक सिद्ध होने वाला है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की मानें तो यह नोवेल कोरोनावायरस (2019-nCoV, Covid-19) का पहला मामला था। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो नोवेल कोरोनावायरस का सबसे पहला मामला 8 दिसंबर को चीन के वुहान शहर में रिपोर्ट किया गया था जबकि मेडिकल शोध को प्रकाशित करने वाली जर्नल लांसेट (The Lancet) के अनुसार वुहान के जिनइन्तन हॉस्पिटल (Jinyintan Hospital) में 1 दिसंबर को इस वायरस से संक्रमित पहला मामला सामने आया था। यह वास्तव में वह दौर था जब चीन से इस वायरस संक्रमण से संबंधित खबरें निकलकर नहीं आ रही थी शायद चीनी सरकार इस वायरस संक्रमण को पूरी दुनियां से छिपाना चाह रही थी। चीन में उस समय एक नये रहस्यमय वायरस का प्रकोप तेजी से फैल रहा था। 


कोरोनावायरस को COVID-19 नाम कब दिया गया?

31 दिसंबर, 2019 को चीन के डब्ल्यूएचओ कंट्री ऑफिस में न्यूमेनिया के नए और अजीबोगरीब मामले सामने आए। उसका कारण पता नहीं था। चीन के वुहान शहर में ऐसे मामले बड़ी संख्या में सामने आए। फिर पता चला कि ये संक्रण नए कोरोनावायरस की वजह से हो रहा है जिसका नाम 2019 नोवल कोरोनावायरस (2019-nCoV) दिया गया। बाद में 11 फरवरी, 2020 को टैक्सोनोमी ऑफ वायरसेज की इंटरनैशनल कमिटी ने इसका नाम severe acute respiratory syndrome coronavirus 2 या SARS-CoV2 दिया। इसका नाम SARS-CoV2 इसलिए दिया गया क्योंकि यह उस कोरोनावायरस का जेनेटिक कजन है जिससे 2002 में SARS-CoV फैला था।


फिर इसका नाम बदलकर COVID-19 क्यों रखा गया?

आधिकारिक तौर पर बीमारियों का नाम डब्ल्यूएचओ रखता है। नाम रखते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि यह किसी खास जगह, जानवर या आदमी से संबंधित न हो। साथ ही नाम आसान भी हो और बीमारी से जुड़ा भी हो। SARS-CoV2 के मुकाबले COVID-19 ज्यादा आसान है।

दरअसल COVID-19 संक्षेप में है। इसका पूरा नाम है ‘Coronavirus diseases’। चूंकि यह बीमारी 2019 में फैली इसलिए पूरा नाम Coronavirus diseases 2019 हुआ। अब Corona का CO, virus का VI और diseases का D मिलाकर COVID-19 नाम कर दिया गया। COVID-19 उस महामारी का नाम है जो SARS-CoV2 वायरस से होती है। 11 फरवरी, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रेस रिलीज जारी किया और उसके माध्यम से 2019 की कोरोनावायरस बीमारी को कोविड-19 नाम दिया।


कितने प्रकार के कोरोनावायरस इंसान में बीमारी पैदा करते हैं?

सिर्फ सात कोरोनावायरस ऐसे हैं जो इंसान में बीमारी फैलाते हैं। चार कोरोनावायरस की वजह से इंसान में आम सर्दी जुकाम की समस्या होती है। इनके नाम 229ई, ओसी43, एनएल63, और एचयूके1 हैं। तीन कोरोनावायरस इंसान में फेफड़े का गंभीर संक्रमण पैदा करता है 2002 में SARS-CoV, 2012 में MERS-CoV (Middle East respiratory syndrome) और मौजूदा ‘COVID-19’।


नोवल कोरोनावायरस क्या है?

नोवल कोरोनावायरस का मतलब है कि यह नया वायरस है। पहले यह इंसान में नहीं पाया गया है। इसका मतलब है कि यह उन कोरोनावायरसों से अलग है जिसकी वजह से आम सर्दी जुकाम की समस्या होती है। सार्स और मर्स की तरह ही नोवल कोरोनावायरस भी जूनोटिक बीमारी है। जूनोटिक बीमारी वैसी बीमारी होती है जो जानवर में होती है और जानवर से इंसान में फैलती है।


कोरोना वायरस के प्रमुख लक्षण क्या-क्या है।

😷 कोरोना वायरस मे सबसे पहले मनुष्य को बुखार होता है। उसके बाद धीरे-धीरे सूखी खांसी और सर्दी होने लगती है।

😷 सामन्य तौर पर उसके एक या दो हफ्तों के बाद उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। यह कोरोना के मुख्य लक्षण है।

😷 कई लोगो ने कोरोना वाइरस के लक्षण को तीन भागो मे विभाजित किया है। सामान्य लक्षण, हल्के सामान्य लक्षण और बेहद गंभीर लक्षण।

😷 कोरोना के सामान्य लक्षण मे सामान्य बुखार, थकान और सूखी खांसी शामिल है।

😷 कोरोना के हल्के सामान्य लक्षण मे गले में खराश, सरदर्द, नाक बहना, दस्त, आँख आना और शरीर मे दर्द और मांसपेशियों में जकड़न शामिल है। 

😷 लेकिन अगर सीने में दर्द या दबाव हो, बोलने, चलने और फिरने में परेशानी हो और सांस लेने मे तकलीफ होती हो तो समझ जाइए की यह कोरोना के बेहद गंभीर लक्षण है। इस परिस्थिति में सही इलाज की बहोत जरूरत है, नहीं तो जान भी जा सकती है। इसके अलावा बुजुर्ग और अस्थमा, हार्ट या मधुमेह की बीमारी वाले लोगो के लिए यह वायरस बहुत ही खतरनाक है।

कोरोना वायरस (Covid-19)- कैसे पहुंचाता है शरीर में।

अब सबसे महत्वपूर्ण जानकारी कि आखिर कोरोना वायरस शरीर में कैसे प्रवेश करता है और शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाता है। कोरोना वायरस हमारे शरीर के सेल में कहीं से भी प्रवेश नहीं कर सकता सिवाय फेफड़ों के।

कोरोना एक ऐसा वायरस है। जो दो चीजों से बना होता है। जैसा कि आप सभी ने आजकल चारों तरफ छप रही कोरोना वायरस की फोटो में देखा है। यह एक गोल बॉल जैसे आकार का होता है जिस पर बाहर की तरफ नुकीले उभार निकले रहते हैं।

जो भाग इसका बाहर की तरफ नुकीला निकला होता है। उसे स्पाइक प्रोटीन कहते हैं। और यह इस वायरस का सबसे घातक भाग होता है। अगर इस वायरस से इस स्पाइक प्रोटीन को हटा दिया जाय तो यह वायरस बहुत कमजोर हो जायेगा। कहने का मतलब बिना इस नुकीले निकले स्पाइक प्रोटीन के यह वायरस बिलकुल भी खतरनाक नहीं है।

और दूसरा भाग होता है इसके बॉल के अन्दर वाला भाग। जिसे जेनेटिक मटेरियल (RNA) कहते हैं। और यही भाग है जो इसकी जनसख्या बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है। इसी जेनेटिक मटेरियल की मदद से यह वायरस तेजी से लाखों करोड़ों में अपनी तादाद बढ़ा लेता है।

स्पाइक प्रोटीन ही इस वायरस की वो ताकत है जिसकी मदद से यह हमारे शरीर में अन्दर फेफड़ों में घुस सकता है।

हमारे फेफड़ों के जो सेल होते हैं वो काफी सेंसिटिव होते हैं। उसमें भी जो सेल मेम्ब्रेन होते हैं वहां से यह वायरस बिलकुल भी अन्दर प्रवेश नहीं कर पाता। क्योकि हमारे फेफड़ों के जो सेल मेम्ब्रेन होते हैं वह केवल कुछ खास चीज को ही अपने अन्दर जाने देते हैं। जैसे कि विटामिन प्रोटीन आदि।

बाकी की चीजों के लिए हमारे फेफड़ों में कुछ रिसेप्टर होते हैं, कुछ टिश्यू होते हैं। जिनकी मदद से हमारा शरीर बाहर की चीजों को अन्दर ग्रहण करता है। कोरोना वायरस जो है अपने स्पाइक प्रोटीन वाले नुकीले उभार की मदद से उन्हीं रिसेप्टर पर चिपक जाता है। और इन्ही की मदद से फेफड़ों के अन्दर चला जाता है।

और यहां से शुरू होती है असली परेशानी। अन्दर आकर यह वायरस हमारे शरीर के बहुत ही महत्वपूर्ण भाग Ribosome (राइबोसोम) की मदद से तेजी से अपनी जनसख्या बढ़ाता है। Ribosome हमारे शरीर का वह भाग है जो प्रोटीन का निर्माण करता है। यूँ कहें की यह फोटोकॉपी मशीन की तरह काम करता है। यहीं यह बहरूपिया वायरस अपने स्पाइक प्रोटीन की मदद से हमारे Ribosome को धोखा देकर अपने जैसे और वायरस का निर्माण हमारे शरीर की मदद से ही कर लेता है। आसान शब्दों में यह Ribosome को धोखे से अपने जैसे  Xerox copies तेजी से बनाबाता रहता है।

इस तरह हमारे फेफड़ों में तेजी से लाखों वायरस पनप जाते हैं। और हमारे फेफड़ों को चोक करना शुरू कर देते हैं। खून में प्रवेश करके पूरे शरीर में दौड़ने लगते हैं। व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। और इस जगह आकर जिन व्यक्तियों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। वायरस से लड़ने के लिए जल्दी ही एंटीबॉडी का निर्माण नहीं कर पाता ऐसे मरीजों की मौत हो जाती है।


हमारा इम्यून सिस्टम कैसे लड़ता है कोरोना वायरस से?

जैसे ही हमारे Ribosome की मदद से कोरोना वायरस अपनी जनसख्या बढ़ाता है। हमारे फेफड़ों में चारों तरफ वायरस ही वायरस हो जाते हैं। हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम तुरंत अलर्ट पर आ जाता है। उसे लगता है कुछ गलत बाहरी आक्रमणकारी है जो शरीर में घुस आया है। और हमारे शरीर के सैनिक यानि की एंटीबाडी इस बाहरी आक्रमणकारी वायरस को मारना शुरू कर देते हैं। फेफड़ों में जो सैनिक एंटीबाडी और आक्रमणकारी वायरस में युद्ध होता है उससे हमारे अन्दर का माहौल गर्म होता है। उसी से हमारे शरीर में बुखार हो जाता है। हमारे शरीर में जब अन्दर कुछ उथल-पुथल होती है वही बुखार की मुख्य वजह होती है। मतलब कि हमारा शरीर किसी गलत चीज से लड़ रहा होता है।

अब यहां एक चीज अलग हो रही होती है। हमारे शरीर में जितने एंटीबाडी है। वो जितने वायरस को मार रहे होते हैं। वायरस उससे कहीं ज्यादा गति से पैदा हो रहा होता है। और वो हमारे इम्यून सिस्टम पर ही हावी होने लगता है। उसके काबू में नहीं आ पा रहा होता।

तब हमारे शरीर का दूसरा मुख्य सिस्टम न्यूक्लियस संकेत देता है कि इस वायरस को मार-मार के खत्म नहीं किया जा सकता। जितने वायरस मारे जा रहे हैं उससे ज्यादा पैदा हो रहे हैं। इसीलिए हे इम्यून सिस्टम तुम खूब सारे एंटीबाडी बनाओ। 

फिर हमारा इम्यून सिस्टम खूब सारे एंटीबाडी पैदा करता हैं। और वो एंटीबाडी चारों तरफ से वायरस पर आक्रमण कर देते हैं। अब जितने वायरस पैदा नहीं हो पाते उससे ज्यादा मर रहे होते हैं। इस तरह संक्रमण खत्म हो जाता है।


कोरोना वायरस से किसकी मौत होती है और क्यों

जैसा कि हमने ऊपर आपको बताया। जैसे ही हमारे शरीर में वायरस प्रवेश करता है। हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम यानि कि डिफेन्स मकेनिज्म उससे लड़ने लग जाता है। जिस वजह से शरीर में बुखार होता है। 

लेकिन जितनी संख्या में वायरस पैदा होते हैं। तो हमारा इम्यून सिस्टम उसी अनुपात में खूब सारे एंटीबाडी बनाता है। एंटीबाडी हमारे शरीर के वो सैनिक होते हैं। जो किसी भी बीमारी से लड़ते हैं।

अब जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। वो जल्दी ही और भरपूर मात्रा में एंटीबाडी नहीं बना पाता। अब हमारे शरीर के सैनिकों से दुश्मन यानि की वायरस की संख्या अधिक होने लगती है। और वह हमारे डिफेन्स मेकेनिज्म को ध्वस्त कर देता है। फेफड़ों पूरी तरह नष्ट होने लगते हैं। शरीर में ओक्सीजन की कमी होने लगती है। और धीरे-धीरे मरीज की मृत्यु हो जाती है।

अतः कोरोना वायरस से उन्हीं मरीजों की मृत्यु होती है। जिनका डिफेन्स मकेनिज्म यानि कि इम्यून सिस्टम कमजोर होता है।


क्या वैक्सीन सुरक्षित है?

वैक्सीन का एक प्रारंभिक रूप चीन के वैज्ञानिकों ने 10वीं शताब्दी में खोज लिया था। लेकिन 1796 में एडवर्ड जेनर ने पाया कि चेचक के हल्के संक्रमण की एक डोज चेचक के गंभीर संक्रमण से सुरक्षा दे रही है। एडवर्ड जेनर (सन्‌ 1749-1823) अंग्रेज कायचिकित्सक तथा चेचक के टीके के आविष्कारक थे।

उन्होंने इस पर और अध्ययन किया। उन्होंने अपने इस सिद्धांत का परीक्षण भी किया और उनके निष्कर्षों को दो साल बाद प्रकाशित किया गया।

तभी 'वैक्सीन' शब्द की उत्पत्ति हुई।  वैक्सीन को आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सकीय उपलब्धियों में से एक माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैक्सीन की वजह से हर साल करीब बीस से तीस लाख लोगों की जान बच पाती है।

आधुनिक समय में वायरस के खिलाफ दवाओं (Drugs) और टीके (Vaccines) बनाने की पद्धति के विकास का परिणाम है कि स्मॉल पॉक्स (Small Pox) जैसे रोग को दुनिया से खत्म किया जा चुका है। 

आपको जानकर हैरत होगी की पूरी दुनिया में टीके (Vaccines) के कारण अभीतक सिर्फ स्मॉलपॉक्स ही वह रोग है जिससे पूरी दुनिया को मुक्ति मिल पाई पाई है। 1980 में दुनिया स्मॉलपॉक्स मुक्त घोषित हुई। वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने यह घोषणा की थी। WHO के अनुसार अगर कोई रोग 10 लाख की जनसँख्या में किसी एक को हो तो उस बिमारी से मुक्ति मिलना मान लिया जाता है।

लेकिन इससे पहले सदियों तक मनुष्यों ने इस विषाणु और रोग से संघर्ष किया। यह रोग कितना खतरनाक था, ऐसे समझें कि इससे पीड़ित हर 3 में से 1 की मौत होती थी और जो बचते थे, उनके चेहरे पर हमेशा के लिए गहरे दाग रहते थे और अक्सर अंधापन भी झेलना होता था। 20वीं सदी में इस बीमारी के कारण 30 करोड़ मौतों का आंकलन किया जा चुका है। यहाँ पर हम बताते चलें की पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों का जीवन बचाने का श्रेय एडवर्ड जेनर को जाता है। (वहीं सबसे ज्यादा जीवन गवाने का श्रेय एडोल्फ हिटलर को जाता है।)


हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कार्य कैसे करता है?

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के तीन मुख्य कार्य हैं। 

पहला- इन रोगजनकों का पता लगा रहा है। 

दूसरा- हमारे शरीर से इन रोगजनकों को हटाने और उनके खिलाफ युद्ध छेड़ना। यह हमारे शरीर के भीतर श्वेत रक्त कोशिकाओं द्वारा किया जाता है। श्वेत रक्त कोशिकाएं हमारे शरीर की व्यक्तिगत सेना होती हैं। वे रोगजनकों से लड़ती हैं और उन्हें शरीर से निकाल देती हैं और जब ऐसा होता है, तो हमारा शरीर लक्षण दिखाना शुरू कर देता है। उदाहरण के लिए, बुखार, खांसी और जुकाम ये सभी लक्षण बताते हैं कि हमारा शरीर लड़ रहा है इस वायरस के खिलाफ और शरीर से इसे हटा रहा है कि यह हमारे शरीर से रोगजनक को हटाने की कोशिश कर रहा है। श्वेत रक्त कोशिकाएं रोगजनकों के खिलाफ एंटीबॉडी जारी करती हैं ताकि ऐसा किया जा सके।

प्रति प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली का तीसरा काम यह याद रखना है कि, कैसे याद रखें एक रोगजनक के खिलाफ प्रतिक्रिया करने और लड़ने के लिए जो पहले से ही एक बार सामना कर चुका है  हमारे शरीर को पहले से तैयार करते हैं, ठीक एक मॉक परीक्षा की तरह यह शरीर को रोगजनक को पहचानने में मदद करता है और इसे कैसे लड़ना है और इसे शरीर से निकालने की योजना बनाने में मदद करता है ताकि जब वह रोगजनक वास्तव में शरीर में प्रवेश करता है, तो हमारा शरीर उससे लड़ने के लिए पहले से ही तैयार होता है और पहले से ही एक संग्रहीत योजना होती है कि उसके खिलाफ एंटीबॉडी कैसे उत्पन्न करें और इसे शरीर से हटा दें ताकि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली रोगजनक से लड़ने में सक्षम हो सके।


वैक्सीन कैसे कोरोना वायरस से बचाती है

दोस्तों वैक्सीन मतलब टीका जो कि कोरोना बीमारी से बचाव का एकमात्र उपाय है। वो भी एंटीबाडी वाली थ्योरी पर काम करती है। कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) और कुछ नहीं करता वैक्सीन सिर्फ हमारे शरीर में एंटीबाडी बनाने का काम करता है। जिससे वायरस शरीर में घुसते ही मार दिया जाए।

वैक्सीन भी वायरस का ही एक रूप होता है यानि की कोरोना से बचने के लिए शरीर में नकली कोरोना डाला जाता है। यहाँ नकली मतलब कमजोर या निष्क्रिय। अब होता क्या है कि कोरोना वायरस एक RNA वायरस होता है। जैसे हमारा शरीर DNA से बना होता है। वैसे ही वायरस का RNA से।

अब वैज्ञानिकों ने कोरोना का RNA लेकर कमजोर करके एक नकली कोरोना बनाया होता है। और उसमें केमिकल मिला दिए जाते हैं। इसे ही वैक्सीन कहते हैं। अब इस वैक्सीन मतलब कोरोना के कमजोर RNA को वैक्सीन के रूप में इंजेक्शन से शरीर में डाला जाता है।

जैसे ही वायरस का RNA शरीर में पहुंचता है। हमारा इम्यून सिस्टम अलर्ट हो जाता है। उसे लगता है शरीर पर किसी बाहरी आक्रमणकारी शत्रु ने आक्रमण किया है। उसे नहीं पता होता कि ये नकली वायरस है जो शरीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

हमारा इम्यून सिस्टम उसे असली वायरस समझ कर उससे लड़ने के लिए एंटीबाडी पैदा करता है। इसीलिए कभी-कभी वैक्सीन लगवाने के बाद कुछ लोगों को बुखार आता है। और इस तरह हमारे शरीर में इतने एंटीबाडी हो जाते हैं। कि जब कभी भी शरीर पर असली कोरोना वायरस आक्रमण करता है। वो एंटीबाडी तुरंत उसे मार गिराते हैं।

तभी तो वैक्सीन लगवाया हुआ व्यक्ति जब कभी भी कोरोना संक्रमित हो भी जाता है। तो आसानी से ठीक हो जाता है। उस केश में उसकी मृत्यु नहीं हो सकती।


पूरी दुनिया में कितने प्रकार से कोरोना वैक्सीन बन रही है?

वर्तमान समय  पूरी दुनिया में चार प्रकार से कोरोना वैक्सीन बन रही है

1. आरएनए-डीएनए आधारित वैक्सीन

2. प्रोटीन आधारित वैक्सीन 

3. वायरल वेक्टर वैक्सीन 

4.निष्क्रिय या कमजोर पड़ चुके वायरस से बनी वैक्सीन 


आरएनए-डीएनए आधारित वैक्सीन कैसे करता है काम? 

आरएनए-डीएनए आधारित वैक्सीन को बनाने में कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड का इस्तेमाल किया जाता है। इसके एक छोटे से हिस्से को जब व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है तो यह शरीर में वायरल प्रोटीन बनाता है, न कि पूरा वायरस। इस तरह शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र वायरस पर हमला करने के लिए तैयार हो जाता है। मॉडर्ना कंपनी ने आरएनए आधारित वैक्सीन ही बनाई है, जिसे अमेरिका ने हाल ही में आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दी है।


प्रोटीन आधारित वैक्सीन 

इस तरह की वैक्सीन को बनाने में कोरोना वायरस के प्रोटीन सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन सेल्स से वायरस स्ट्रेन के जरिए इम्यूनिटी विकसित की जाती है।


वायरल वेक्टर वैक्सीन 

वायरल वेक्टर वैक्सीन को बनाने के लिए पहले वायरस स्ट्रेन को संक्रमणमुक्त किया जाता है और फिर उसके इस्तेमाल से कोरोना वायरस प्रोटीन विकसित किया जाता है। इसके बाद उन प्रोटीन्स के जरिए शरीर में इतनी इम्यूनिटी विकसित की जाती है कि वो वायरस के संक्रमण को रोक ले। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन और रूस की 'स्पूतनिक-वी' वायरल वेक्टर आधारित वैक्सीन ही है।


निष्क्रिय या कमजोर पड़ चुके वायरस से बनी वैक्सीन 

इस तरह की वैक्सीन को बनाने के लिए निष्क्रिय हो चुके या कमजोर पड़ चुके ऐसे वायरस के स्ट्रेन का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें संक्रमण फैलाने की क्षमता खत्म हो चुकी होती है। इससे शरीर वायरस से लड़ना सीखता है और उसके खिलाफ इम्यूनिटी विकसित करता है, जो बाद में सक्रिय वायरस से लड़ने में काम आती है। चीन की कोरोनावैक इसी पर आधारित वैक्सीन है। 


कौन सा वैक्सीन ज्यादा असरदार है?

तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है की Pfizer (BioNTech) ज्यादा असरदार है। लगभग 95% इफेक्टिव है। लेकिन इसका भंडारण -80 से -60 डिग्री पर ही सम्भव है। 

वर्तमान समय में भारत में कितने प्रकार के कोरोना वैक्सीन उपलब्ध है?

वर्तमान समय में भारत में तिन प्रकार के कोरोना वैक्सीन उपलब्ध है:- 

1. कोवैक्सिन, 2. कोविशिल्ड 3. स्पुतनिक V

भारत में उपलब्ध तिन वैक्सीन का विल्कप उनमें से कौन सा बेहतर 

1. कोवैक्सिन

कम्पनी:- आइसीएमआर (भारत बायोटेक है कोवैक्सिन का निर्माता)

वैक्सीन के प्रकार:- इनेक्टिवेटेड (डेड कोरोना वायरस)

कितनी डोज:- 2 (दोनों में एक ही वायरस)

टिके की दूसरी डोज कितने दिन बाद:- 28 दिन बाद 

कितनी प्रभावी:- 78 फीसदी 

कितने देशों में:- केवल भारत में 

2. कोविशिल्ड 

कम्पनी:- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राजेनेका और भारतीय कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट

वैक्सीन के प्रकार:- वायरल वेक्टर (चिम्पैंजी में पाए जाने वाले एडेनोवायरस से)

कितनी डोज:- 2 ((दोनों में एक ही वायरस)

टिके की दूसरी डोज कितने दिन बाद:- 42-56 दिन (ज्यादा अंतराल पर अधिक प्रभावी)

कितनी प्रभावी:- 78 फीसदी 

कितने देशों में:- 80 से अधिक देशों में 

3. स्पुतनिक V

कम्पनी:- रूस में बनी है, भारत में डॉ0 रेड्डीज लैब बना रही 

वैक्सीन के प्रकार:- वायरल वेक्टर (इसमें दो अलग-अलग वायरस से. इसलिए इसके दोनों डोज अलग-अलग हैं)

कितनी डोज:- 2 (दोनों में अलग-अलग वायरस है. इसलिए दोनों को लगवाना जरूरी)

टिके की दूसरी डोज कितने दिन बाद:- 21 दिन बाद 

कितनी प्रभावी:- 90.1 फीसदी 

कितने देशों में:- 60 से अधिक देशों में 

तुलनात्मक अध्ययन में हम पाते हैं की स्पुतनिक V वैक्सीन ज्यादा बेहतर है क्योंकि इसकी प्रभावी छमता 90.1 फीसदी है। और दूसरी बात यह है की इस वैक्सीन की दूसरी डोज 21 दिन के बाद ही हम ले सकते हैं। 

नोट:- वर्तमान समय में भारत में सारे सरकारी अस्पतालों में कोरोना वैक्सीन के रूप में कोविशिल्ड दिया जा रहा है। अब प्रश्न उठता है ही की क्या हमें कोविशिल्ड लेना चाहिए की नहीं। तो जबाब है- हाँ, हमें इन्तेजार करने की आवश्यकता नहीं है जो भी वैक्सीन मिल रहा है विलम्ब न करते हुए इसे तुरंत लें। 


क्या कोरोना वैक्सीन लेना आवश्यक है?

कोरोना वैक्सीन लेना आवश्यक ही नहीं अपितु यह अति आवश्यक है। 

वर्तमान समय में आप आपने आपको तिन ही तरीके से सुरक्षित रख सकते हैं:-

1. आप अपने आप को एक बंद कमरे में बंद कर लें।

2. आप कोरोना पॉजिटिव हो कर वापस निगेटिव (ठीक) हो जाएं। इससे यह होगा की आपके शरीर में नेचुरल रूप से एंटीबाडी बन जाएगा जो कोरोना से लड़ने में आपको मदद करेगा।

3. कोरोना वैक्सीन ले कर। 

इसमें कोई दो राय नहीं की हर हाल में कोरोना वैक्सीन लेना ही सुरक्षित है।


टीका लगने से पहले क्या सतर्कता बरतनी चाहिए? 

➤ अगर किन्हीं को किसी दवा से एलर्जी है तो कोरोना टीका लगवाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेना चाहिए। कंप्लीट ब्लड काउंट (CBC), C-रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) या इम्यूनोग्लोब्युलिन-E (IgE) लेवल की जांच की जा सकती है।

➤ अगर टीका लेने से पहले कोई दवाई खाने को कहा गया हो तो जरूर खाएं। टीकाकरण को लेकर किसी तरह का तनाव न पालें, बिल्कुल सहज रहें।

➤ डाइबिटीज या ब्लड प्रेशर के मरीज को टीका लेने से पहले सुगर और ब्लड प्रेशर लेवल को सामान्य स्तर पर लाने की जरूरत है। कैंसर के मरीजों और खासकर जिनकी कीमियोथेरपी हुई है, उन्हें डॉक्टरों की सलाह माननी चाहिए।

➤ कोविड के इलाज के दौरान जिन्हें ब्लड प्लाज्मा या मोनोक्लोनल एंटिबॉडीज चढ़ाया गया हो या फिर जो पिछले डेढ़ महीनों में कोरोना से संक्रमित हुए हों, उन्हें अभी वैक्सीन नहीं लेना चाहिए।


टीका लग जाने के बाद क्या?

➤ टीका लगवाने के बाद वैक्सीन सेंटर में तब तक जरूर रुके रहें जब तक कि आपको जाने की अनुमति नहीं दी जाए। सेंटर पर आपको इसलिए रुकने को कहा जाता है ताकि परखा जा सके कि टीका लगने से आपमें कोई साइड इफेक्ट तो नहीं हो रहा है।

➤ जहां सूई चुभोई गई है, वहां थोड़ी सी सूजन और हल्का बुखार सामान्य लक्षण हैं। टीका लगने के बाद सूजन और बुखार हो तो बिल्कुल नहीं घबराएं। संभवतः थोड़ी ठंड और थकान भी महसूस हो। ये सब सामान्य है।

➤ वैक्सीन हमारे प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) को बाहरी खतरों से लड़ना सिखाता है। कोविड- 19 की वैक्सीन भी शरीर में कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ लड़ने की ताकत पैदा करती है, लेकिन इसमें कुछ सप्ताह लग जाते हैं। ये मत समझें कि वैक्सीन लगा लिया तो अगले ही पल आप कोरोना वायरस के खिलाफ सुरक्षित हो गए। और हाँ ऐसा बिलकुल भी न करें की अरे यार अब तो टिका लगबा लिया अब क्या होगा, खूब महफिलें सजाने लगें, ........


क्या टिका लगवाने के बाद भी संक्रमन (कोरोना पॉजिटिव) हो सकता है?

जबाब है हाँ। लेकिन यह तय है की टिका लगवाने के बाद भी संक्रमन होगा तो जीवन समाप्त नहीं होगा। समान्य रूप से, कोरोना से संक्रमित व्यक्ति हल्के उपचार से ठीक हो जाएगा। 

सभी वायरस प्राकृतिक तौर पर समय के साथ म्यूटेट करते हैं यानी अपनी संरचना में बदलाव करते हैं। उसी तरह यह कोरोना वायरस भी करता है। 

हलांकि अक्सर म्यूटेशन की वजह से वायरस की प्रॉपर्टी पर कम असर पड़ता है। लेकिन कोरोना वायरस में थोड़ा सा अलग होता है। ज्यदातर म्युटेट के बाद जीनोम में ज्यादातर म्यूटेशन यात्री की तरह होते हैं, यानी वे वायरस का व्यवहार नहीं बदलती, वे बस साथ चलती रहती हैं।" लेकिन कोरोना वायरस के मामले में ऐसा नहीं है। इसमें थोड़ा बदलाव सम्भव है। 

सामान्य रूप से इस प्रकार समझ सकते हैं- कोरोना म्युटेशन, एक तरह का फोटोकॉपी है। म्युटेशन के दौरान अर्थात फोटोकॉपी करने के दौरान, फोटोकॉपी में खराबी आ जाने से या फिर बहुत तेज गति से फोटोकॉपी करने से इसमें ज्यादा इसमें थोड़ा बदलाव आ जाता है। 


पूरी दुनिया से कोरोना वायरस कब खत्म होगा?

अफसोस, यह हो सकता है की यह कभी खत्म ही न हो। अगर खत्म होगा भी तो कई सदियाँ लगेगा। जैसा की आपने पहले ही पढ़ा की अभी तक सिर्फ हमें स्मॉलपॉक्स के वायरस से ही मुक्ति मिली है। इसके अलावे किसी भी अन्य वायस से पूरी दुनिया को निजात नहीं मिल पाया है। बहरहाल जो भी इतना तो तैय है की यह पूरी दुनियां में, हमारे साथ कई सदियों तक साथ रहने वाला है 

इसकी कई वजहें हैं इसे बारी-बारी समझने की कोशिश करते हैं:-

💢 अभी तक 18 साल से निचे के लिए वैक्सीन बना ही नहीं है। Pfizer-BioNTech vaccine को छोड़ कर इस  वैक्सीन का उपयोग 16 से अधिक उम्र के लोगों को भी दे सकते हैं। लेकिन यह भारत में अभी मिलना सम्भव नहीं है यह याद रहे की भारत की 33% आवादी 0 -18 वर्ष की है। अर्थात कुल आवादी के लगभग 45 करोड़ को तो अकेले भारत में वैक्सीन नहीं लगना है

💢 वर्तमान समय में वैसे ही वैक्सीन की किल्लत है जिसके कारण अभी बहुत लंबा समय लगेगा वैक्सीनेशन में

💢 हमारे देश में वैक्सीन लेना वोलेंट्री है। अर्थात वैक्सीन लेना न लेना यह हमें ही सोचना है, इसमें कोई वाध्यता नहीं है। और दुर्भाग्यवश हमारे बिच ऐसे लोगों की भरमार है। अक्सर ऐसे लोग Pandemic नहीं बल्कि Infodemic के शिकार होते हैं। इनके पास ऐसे कई साधन हैं जिनसे ये उलजलूल सूचनाएं इकट्ठा करते हैं। जैसे-  WhatsApp University🎓, Facebook University🎓, WhatsApp Group⯒, उलजलूल TV debate, इनके आस-पास कई ऐसे लोग होते हैं जो बैल बुद्धि के होते हैं उनके द्वारा दी गई सूचनाएं, तथाकथित तर्क 

उपरोक्त संशाधनों से ऐसे लोग जो खुद ही दिग्भ्रमित होते हैं वे सूचनाएं इकट्ठा करते हैं और अलग ही नशा में रहते हैं। ऐसे लोग जबतक वैक्सीन नहीं लेंगें तबतक की सरकार वैक्सीन लेने के लिए बाध्य न कर दे। और हमारे देश में ऐसे कार्यों में बाध्य किया जाए, ऐसी परम्परा तो हमारे देश में है ही नहीं और सरकारें करेंगे भी नहीं

💢 कई देश ऐसे हैं जिनके पास न तो वैक्सीन बनाने की तकनीक है और न ही उनके पास इतना पैसा की वह वैक्सीन दुसरे देश से खरीद सकते हैं। वे पूरी तरह दुसरे देशों के रहमों करम पर हैं। ऐसे ज्यदातर देश अफ्रीका के हैं। ऐसे देशों में पूरी तरह वक्सिनेशन करने में कई वर्ष लग सकते हैं

💢 कोरोना वायरस को पूरी दुनिया से अभी खत्म तो नहीं लेकिन कंट्रोल जरुर किया जा सकता है, उसके लिए एक ही शर्त है की पूरी दुनिया में लगभग एक ही समय में कोरोना वैक्सीन दिया जाए जो की सम्भव हैं ही नहीं है

💢 बहरहाल एक समय ऐसा आएगा जब पूरी आबादी के लगभग 70 से 80 % लोगों को यह वैक्सीन लग जायेगा या उनको कोरोना होने के कारण उनके शरीर में नेचुरल रूप से एंटीबाडी बन जायेगी तब एक स्टेज आयेगा। उस स्टेज को Herd immunity कहते हैं। तब कोरोना वायरस कंट्रोल होने की अवस्था में आ जायेगा। जैसा की  इजराइल के साथ हुआ

💢 कोरोना वायरस से जहां भारत समेत कई देशों में हाहाकार मचा हुआ है वहीं, इजराइल दुनिया का इकलौता ऐसा देश बन गया है जिसने लोगों को मास्क न पहनने को कहा गया है। आपको बता दें कि इजराइल में 16 से 80 वर्ष तक के 81 फीसदी जनता को कोरोना की वैक्सीन लग चुकी है। 90.5 लाख की आबादी वाले इजरायल में अब तक कुल 837,160 लोग कोरोना से संक्रमित हुए तो 6,338 लोगों की मौत हुई। 


कोरोना वायरस और संभवनाएं

💢 यह याद रहे की कोरोना वायरस म्युटेशन करता है जिसके कारण यह अपने-आपको कुछ हद तक बदलने में सक्षम है। तो यह सकता है की कुछ समया अंतराल के बाद फिर से टिका लेना पड़े। या कुछ महीनें, या प्रत्येक साल, या फिर कुछ साल के बाद फिर से टिका लेना पड़ जाए। यह याद रहे की अभीतक सिर्फ स्मॉलपॉक्स ही वह रोग है जिससे पूरी दुनिया को मुक्ति मिल पाई पाई है। 

💢 यह हो सकता है की टिका वीजा कांसेप्ट आ जाये। अर्थात यह की किसी दुसरे देश में जाने के पहले आपको उस देश को ब्यौरा देना पड़े की पिछली बार आपने कब कोरोना वैक्सीन लिया था 

💢 जहाँ तक भारत की बात है तो भारत में संभवत: जून के अंतिम सप्ताह से कोरोना पर लगाम लगने की शुरुआत होगी। यह याद रहे की यह एक बहुत बड़ा तुक्का था की भारत में कोरोना की पहली और दूसरी लहर आने में वक्त लगा  

ऐसा नहीं था की भारत में कोरोना की दूसरी लहर को रोका नहीं जा सकता था। या फिर यहाँ के विशेषज्ञों को यह पता नहीं था। इससे होने वाले मौतों पर आवश्पयक रूप से लगाम लगया जा सकता था। सब पता था लेकिन यहाँ की राजनैतिक इच्छा शक्ति, सरकारी स्तर पर रवैया बेहद निराशाजनक, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की घोर कमी

आपको यह जानकर हैरानी होगी की मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हमारा देश का विश्व में 145वें स्थान पर आता है  

कोरोना की दूसरी लहर पर बहुत हद तक लगाम लग सकता था। क्या इलेक्शन को कुछ समय के लिए टाला नहीं जा सकता था? क्या कुम्भ के मेले को बिच में रोकने के बजाए इसे पहले ही रोका नहीं जा सकता था? क्या क्रिकेट कोरोना काल में इतना जरूरी था क्या उड़ीसा में फेस्टिवल मनाना इतना जरूरी था? ऐसे कई सवाल? लेकिन इन नेताओं से कौन पूछे? 

वर्तमान समय में राजनेताओं को अपनी राजनीति से ऊपर उठकर विशेषज्ञों की बातों को ध्यान रखते हुए इसपर अम्ल करना चाहिए। सरकारी बाबुओं को भी अपने हित से उपर उठकर कार्य करना होगा। और इनसे जुड़े लोगों को भी अब यह समझाना होगा हमारी और आपकी भी यह जिम्मदारी बनती है की अफवाओं से दूर रहें और लोगों को भी अफवाओं से दूर रखें। जागरूक रहें, सावधान रहें और लोगों को भी जागरूक, सावधान करें। खुद भी वैक्सीन लें और लोगों को भी वैक्सीन लेने के लिए प्रेरति करें। और हाँ सबसे बड़ी बात पॉजिटिव रहें वो कोरोना वाला पॉजिटिव नहीं .....😊


About Author

R. Ranjan

(Principle- 'ERPS')

M.A, M.Sc., B.Ed., M.Ed., NET, CTET, BTET, STET

Exam Experience:- UPSC, BPSC, RPSC Mains/Interview

Teaching Experience:- More Than 6 Years

Writing For The Web:- Since 2016