ग्रेजुएशन के दौरान ही मुझे आईएएस का भूत सवार हुआ ..... और उसकी वजह थी कि मैं एम्बेस्डर गाड़ी और जिलाधिकारी के रुतबे की तरफ खिंचा सा जा रहा था .....। अब सोच तो लिया था लेकिन आईएएस बनूँ कैसे ....? ..... हम तो ठहरे मध्यम परिवार से जहाँ सरकारी कलर्क का ओहदा परिवार में किसी मिनिस्टर से कम नहीं होता था .... अब हम किसे बताएं कि हम आईएएस बनना चाहते हैं? ..... खैर जैसे-तैसे करके कुछ जारकारी हासिल कुछ तो पता चला .... लेकिन अब मुश्किल और बड़ी थी ..... पहाड़ जैसा पाठ्यक्रम ..... हजारों की किताबें लेनी पड़ेंगी ..... कहाँ से लाएंगे इतना पैसा? ..... माँ-पापा तो देने से रहे क्योंकि उन्हें कुछ बताया भी नहीं ना। अब फैसला किया कि एक एक करके किताबे खरीदेंगे यानि एक जब तैयार हो जाएगी तो दूसरी लेंगे ..... इससे बोझ भी नहीं पड़ेगा। .....पहली इतिहास की किताब लाये बड़े ही खुश मन से कि जी जान लगा देंगे ..... शाम को किताब खोली कुछ समझ में ना आये ..... अब बड़ी समस्या ..... हम तो साइंस वर्ग से रहे .... इतिहास तो 8 में ही छोड़ आये थे ..... अब हवा ना लग रही बिलकुल ...जैसे तैसे जबरदस्ती दिमाग में चढाने की कोशिश की तो इतिहास के "सन्" में उलझ गए ..... एक को तैयार करो तो दूसरा भूल जाये ..... कभी कभी तो किसी को पैदा होने से पहले ही मार देते ..... और कभी कभी तो हल्दीघाटी में मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज को लड़ा देते।
बैंड बज गयी दिमाग की उस किताब को तैयार करने में ..... खैर तैयार हुआ हो या ना हुआ हो .... लेकिन किताब के पन्ने पूरे हो गए .... अब भूगोल लाये .... उसे पढ़ने के बाद तो पता चला कि दुनिया इतनी बड़ी है..... खैर भूगोल पढ़ने से कुछ फायदा तो हुआ जैसे "बरसात में बर्षा के साथ मछली या मेढक, भगवान नहीं बल्कि ये मानसून वाला लोचा है" ये बात पता चली ..... खैर ये सब चल ही रहा था .....अचानक यमदूत टाइप का एक दोस्त आया घर ..... बड़े घर का था तो बड़े शहर में पढता था ..... उसे मैंने आईएएस के बारे में बता दिया ..... अब भइया उसने जो हवा भरी कि दो तीन दिन तक तो आईएएस का ख्याल भी मन में ना आया ..... कहने लगा कि " आईएएस बड़े लोगो के लिए हैं, जिन्हें बहुत अंग्रेजी आती हो ..... इसके लिए बड़ी कोचिंग करनी पड़ती है ..... जहाँ फीस लाखों में होती है ..... बड़े बड़े शहरों में हजारों लड़के कोचिंग करते हैं .,... और सबसे बड़ी बात कि सीट केवल 1000 के आस-पास ही होती हैं ....."। अब किताब की तरफ देखने की भी हिम्मत ना पड़ रही थी ..... एक बार फिर मैं तैयार था कोशिश करने के लिए और एक एटीएम व एक बैग लेकर दिल्ली निकल गया मुखर्जी नगर। देखते-देखते 1 साल बीत रहा था और इस साल मैंने सिर्फ आईएएस के बारे में जाना ही था। खैर इतना ही काफी था कि अब मैं सबकुछ जान गया था ..... ताबड़तोड़ पढ़ाई शुरू भी कर दिया था न कोई त्यौहार न कहीं कुछ खाश आना-जाना ..... पर हाँ अकेलापन काफी कचोटता था।
हर प्रतियोगी छात्र किस प्रकार अपनी इच्छाओं, जिम्मेदारीयों, खुशियों एवं पारिवारिक-सामाजिक सम्बन्धों की उपेछा करता है यह सभी समझते हैं और अगर अंतिम रूप से सफल न हुए व फिर से उसी सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में जाना पड़े तो वह छात्र किस प्रकार उपेक्षित महसूस करता है यह आप में से कुछ लोग अवश्य समझते होंगे।
वस्तुतः सिविल सेवा परीक्षा मात्र कुछ प्रश्नों की परीक्षा नहीं है वल्कि यह आपके धैर्य, दृढ़ संकल्प, लक्ष्य प्राप्ति की उत्कंठ आकांक्षा और कुछ कर गुजरने के जूनून की परीक्षा है । इस परीक्षा के एक ओर कठिन पढ़ाई, किस्मत के साथ न देने, परिस्थितियों के आपके विरोध में होने, अपने ही तथाकथित रिश्तेदारों के शब्द-भेदी वाणों से भरे तानों को सहन करने की कठोर साधाना है तो दूसरी और IAS रूपी पद में मोक्क्ष प्राप्ति सा आनंद ...........।
अगर आप Hinduism में विशवास रखते हैं तो आप यह तो जरुर जानते होंगे कि हमलोगों को यह मानव शरीर 84 लाख बोडिज (Stages) के बाद पाते हैं ( There is a saying that We got our present human body (or human life) only after our soul is passed through 8.4 million species. In Bhagavad Gita , Lord Sri Krishna himself told to arjuna that the soul passes 8.4 million bodies and at last it will get a human life. There are also many other Granthas (based on Bhagavad gita) state that we will get a human body/ human life only after the soul passes through 84,00,000 different species and also states that human life is the last one that the soul will get.) क्या इसे हम यूँही जाने दें या यूँ कहें जिंदगी जिये नहीं बल्कि ढोयें। जिंदगी ढोना नहीं बल्कि जीना है और जीना ऐसे है कि हम मरते वक्त यह कह सके कि यार क्या जिंदगी जिया मजा आ गया जी कर। चलिये अगर आप Hinduism को नहीं भी मानते हैं तो कम से कम इतना तो जरुर समझते हैं कि जिंदगी है बहुत अनमोल।
याद रहे; Nobody can stop you from reaching your goal when the size of your desire is more than obstacles in the way. जिसने भी जिन्दगी के मौको का फायदा उठा लिया वह जिन्दगी कि जंग जीत जाता हैं, नहीं तो हर साल इस जिन्दगीं के रेगिस्तान में लाखों लोग आते है कोई ........ तो कोई .......... बनने का सपना देखते हैं लेकिन सफल वही होते हैं जो आखरी साँस तक मेहनत करते हैं नहीं तो उनके शरीर के कंकाल को कोई नहीं पहचानता है और वह इस जिन्दगी के रेगिस्तान में खो जाते हैं।
बैंड बज गयी दिमाग की उस किताब को तैयार करने में ..... खैर तैयार हुआ हो या ना हुआ हो .... लेकिन किताब के पन्ने पूरे हो गए .... अब भूगोल लाये .... उसे पढ़ने के बाद तो पता चला कि दुनिया इतनी बड़ी है..... खैर भूगोल पढ़ने से कुछ फायदा तो हुआ जैसे "बरसात में बर्षा के साथ मछली या मेढक, भगवान नहीं बल्कि ये मानसून वाला लोचा है" ये बात पता चली ..... खैर ये सब चल ही रहा था .....अचानक यमदूत टाइप का एक दोस्त आया घर ..... बड़े घर का था तो बड़े शहर में पढता था ..... उसे मैंने आईएएस के बारे में बता दिया ..... अब भइया उसने जो हवा भरी कि दो तीन दिन तक तो आईएएस का ख्याल भी मन में ना आया ..... कहने लगा कि " आईएएस बड़े लोगो के लिए हैं, जिन्हें बहुत अंग्रेजी आती हो ..... इसके लिए बड़ी कोचिंग करनी पड़ती है ..... जहाँ फीस लाखों में होती है ..... बड़े बड़े शहरों में हजारों लड़के कोचिंग करते हैं .,... और सबसे बड़ी बात कि सीट केवल 1000 के आस-पास ही होती हैं ....."। अब किताब की तरफ देखने की भी हिम्मत ना पड़ रही थी ..... एक बार फिर मैं तैयार था कोशिश करने के लिए और एक एटीएम व एक बैग लेकर दिल्ली निकल गया मुखर्जी नगर। देखते-देखते 1 साल बीत रहा था और इस साल मैंने सिर्फ आईएएस के बारे में जाना ही था। खैर इतना ही काफी था कि अब मैं सबकुछ जान गया था ..... ताबड़तोड़ पढ़ाई शुरू भी कर दिया था न कोई त्यौहार न कहीं कुछ खाश आना-जाना ..... पर हाँ अकेलापन काफी कचोटता था।
कभी-कभी तो लगता था कि " अब छोड़ दे हमसे ना हो पाएगा भईया" ..... पर वो एम्बेस्डर गाड़ी और उस पर नीली बत्ती वापस खड़ा कर देती थी। .....समय गुजर रहा था यूँ ही ..... किताबें अभी भी परेशान करती हैं ..... न्यूज पेपर में भी कभी कभी उलझ जाता हूँ ... और अभी भी कोई खरदूषण ये कहने को मिल ही जाता है कि " रहन दे बेटा तुझसे ना हो पायेगा " ..... इतना सब सुनकर भी मन अब विचलित नहीं होता ..... मैंने भी फैसला कर लिया है कि आईएएस अगर कुरुक्षेत्र है तो मैं भी एक योद्धा हूँ ..... जरुरी तो नहीं कि हर रण फतह हो ..... विजेता की तरह शहीद का नाम भी शिद्दत से लिया जाता है ..... अर्जुन ही नहीं अभिमन्यु भी एक योद्धा ही था..... तो मैं आईएएस का रण छोड़कर नहीं भागूंगा भले ही यहाँ वीरगति ही क्यों ना मिल जाये "।
हर प्रतियोगी छात्र किस प्रकार अपनी इच्छाओं, जिम्मेदारीयों, खुशियों एवं पारिवारिक-सामाजिक सम्बन्धों की उपेछा करता है यह सभी समझते हैं और अगर अंतिम रूप से सफल न हुए व फिर से उसी सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में जाना पड़े तो वह छात्र किस प्रकार उपेक्षित महसूस करता है यह आप में से कुछ लोग अवश्य समझते होंगे।
वस्तुतः सिविल सेवा परीक्षा मात्र कुछ प्रश्नों की परीक्षा नहीं है वल्कि यह आपके धैर्य, दृढ़ संकल्प, लक्ष्य प्राप्ति की उत्कंठ आकांक्षा और कुछ कर गुजरने के जूनून की परीक्षा है । इस परीक्षा के एक ओर कठिन पढ़ाई, किस्मत के साथ न देने, परिस्थितियों के आपके विरोध में होने, अपने ही तथाकथित रिश्तेदारों के शब्द-भेदी वाणों से भरे तानों को सहन करने की कठोर साधाना है तो दूसरी और IAS रूपी पद में मोक्क्ष प्राप्ति सा आनंद ...........।
अगर आप Hinduism में विशवास रखते हैं तो आप यह तो जरुर जानते होंगे कि हमलोगों को यह मानव शरीर 84 लाख बोडिज (Stages) के बाद पाते हैं ( There is a saying that We got our present human body (or human life) only after our soul is passed through 8.4 million species. In Bhagavad Gita , Lord Sri Krishna himself told to arjuna that the soul passes 8.4 million bodies and at last it will get a human life. There are also many other Granthas (based on Bhagavad gita) state that we will get a human body/ human life only after the soul passes through 84,00,000 different species and also states that human life is the last one that the soul will get.) क्या इसे हम यूँही जाने दें या यूँ कहें जिंदगी जिये नहीं बल्कि ढोयें। जिंदगी ढोना नहीं बल्कि जीना है और जीना ऐसे है कि हम मरते वक्त यह कह सके कि यार क्या जिंदगी जिया मजा आ गया जी कर। चलिये अगर आप Hinduism को नहीं भी मानते हैं तो कम से कम इतना तो जरुर समझते हैं कि जिंदगी है बहुत अनमोल।
याद रहे; Nobody can stop you from reaching your goal when the size of your desire is more than obstacles in the way. जिसने भी जिन्दगी के मौको का फायदा उठा लिया वह जिन्दगी कि जंग जीत जाता हैं, नहीं तो हर साल इस जिन्दगीं के रेगिस्तान में लाखों लोग आते है कोई ........ तो कोई .......... बनने का सपना देखते हैं लेकिन सफल वही होते हैं जो आखरी साँस तक मेहनत करते हैं नहीं तो उनके शरीर के कंकाल को कोई नहीं पहचानता है और वह इस जिन्दगी के रेगिस्तान में खो जाते हैं।
रात के बाद सुबह आना तय है,
प्रश्न सिर्फ ये है कि हममें रात
काटने का धैर्य है या नहीं।
राजीव रंजन
नई दिल्ली
(5 DEC 2016)
राजीव रंजन
नई दिल्ली
(5 DEC 2016)