Subscribe Us

header ads

ध्वनि प्रदूषण, क्या है साइलेंट जोन? कितने डेसिबल की ध्वनि कहाँ होनी चाहिए

Sound pollution what is Silent Zone How many decibels should sound


क्या है ध्वनि प्रदूषण

शोर व ध्वनि प्रदूषण से आशय है अनावश्यक, अनुपयोगी, असुविधाजनक कर्कश ध्वनि। शोर प्रदूषण दो प्रकार के होते है। प्राकृतिक व कृत्रिम। बादलों का गरजना, नदियों व झरनों का शोर, तूफान व भूकंप से होने वाले शोर प्राकृतिक शोर यानि प्रदूषण के स्त्रोत है। मानव कृत शोर में वाहन, कारखाने, धार्मिक आयोजन, उच्च क्षमता के गीत, संगीत,रेडियो, म्यूजिक प्लेयर, हॉर्न आतिशबाजी, लाउडस्पीकर आदि प्रमुख है। शोर का दुष्प्रभाव कान पर होता है।

औद्योगिकीकरण ने हमारे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डाल दिया है। क्योंकि सभी बड़े छोटे शहरों में उद्योग मशीनों का प्रयोग करते है। इसकी आवाज तेज होती है। कारखानों व उद्योगो में प्रयोग होने वाले उपकरण जैसे कम्प्रेशर, जेनरेटर, गर्मी निकालने वाले पंखे, मिल आदि है। इसके अलावा सामान्य सामाजिक उत्सव जैसे-शादी, पार्टी, पब, क्लब,डिस्क, पूजा स्थल, मंदिर मस्जिद में से निकलने वाले ध्वनि आवासीय इलाकों में शोर उत्पन्न करते है। शहरों मं यातायात के साधन, बाइक हवाईजहाज, ट्रेनों का आवागमन तेज शोर शोर मचाते है।

सामान्य निर्माणी गतिविधियों पर ध्यान दे तो भवनों, पुलों, खानों बांधों स्टेशन, भवन निर्माण में लगने वाले यंत्र भी ध्वनि प्रदूषण फैलाते है। यह सिद्ध हो गया है कि ध्वनि प्रदूषण भी वायु प्रदूषण का हिस्सा है। ध्वनि प्रदूषण अब औद्योगिक शहरीकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इतना ही नहीं ध्वनि प्रदूषण के कारण पशुओं में भी तनाव पैदा करता है। इसके कारण कई पशु पक्षियां विलुप्त हो रहे है। कुछ विषेष प्रजाति की मछलियों की तो मृत्यु हो रही है।


इससे पड़ने वाले प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण से श्रवण शक्ति का हस होता हे। इसके कारण चिडचिडापन, बहरापन, चमड़ी पर सरसराह, उल्टी जी मितलाना, चक्कर आना, और स्पर्श की कमी महसूस करने लगता है। 

➦ यह ध्वनियों में रक्त प्रवाह को प्रभावित कर ह्दय संचालन की गति को तीव्र कर देता है। लगातार शोर खून के कोलस्ट्रोल की मात्र बढ़ा देता है। यह रक्त नलियों को सिकोड़ देता है। जिससे ह्दय रोगों की संभावना बढ़ जाती है। इसके कारण स्नायविक बीमारी, नर्वसब्रेक डाउन करता है।

➦ शोर हवा के माध्यम से संचरण करता है। ध्वनि तीव्रता को नापने की निर्धारित इकाई को डेसीबल कहते है। कहते है कि 100 डेसीबल से अधिक की ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है। शहरों में 45 डेसीबल की ध्वनि को आदर्श माना है जबकि शहर में इन दिनों ठीक दोगुणा यानि 80 से 90 डेसीबल से अधिक मापा गया है। 

➦ औद्योगिक क्षेत्रों में भी इसकी मात्र 75 डेसीबल होनी चाहिए। आवासीय क्षेत्रों में इसकी मात्र 55 डेसीबल होनी चाहिए। अस्पताल, पुस्तकालय, शिक्षण संस्थान, आदि को साइलेंट जोन बनाया गया है।