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शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।

शिक्षा का अर्थ:- अति प्राचीन काल से शिक्षा की अवधारणा/अर्थ विचारकों तथा दार्शनिकों के मस्तिष्कों की आन्दोलित करती आ रही है। 'शिक्षा (Education) शब्द एक व्यापक गुणार्थ है। इस कारण इसको सार रूप में परिभाषित करना कठिन है। जीवशास्त्री, धर्मप्रवर्तक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, कूटनीतिज्ञ, शिक्षक, अभिभावक, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री आदि सभी इसको विभिन्न अर्थों में परिभाषित करते हैं। इस कारण शिक्षा बहुअर्थी है प्रत्येक व्यक्ति जो इस शब्द (शिक्षा) के विषय में पढ़ते हैं या सुनते हैं वह इसको अपने हित की दृष्टि से विवेचित या परिभाषित करते हैं। ये सभी व्यक्ति जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण से इसकी विवेचना करते हैं। उदाहरणार्थ, अभिभावक इसको एक सकारात्मक शक्ति के रूप में देखते हैं जो उसके बालक को समाज में समृद्धि, प्रतिष्ठा तथा नाम प्रदान करने के योग्य बनाती है। शिक्षक इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार करते हैं- यह बालक को नवीन मानव बनाने में सहायता प्रदान करती है। साथ ही यह समाज तथा राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाती है। छात्र इसको दूसरे रूप में देखते हैं - शिक्षा जान, अभिषृत्तियाँ तथा कौशल प्रदान करने वाला साधन है। साथ ही यह डिग्री व प्रमाण-पत्र प्रदान करती है। धर्मप्रवेर्तक ईस शब्द की व्याख्या इस प्रकार करते हैं- इसके द्वारा भौतिक बर्बरता को समाप्त करके आध्यात्मिक मूल्यों को ग्रहण किया जा सकता है। इस प्रकार सभी व्यक्ति' शिक्षा' शब्द की विवेचना अपने अपने दृष्टिकोण से करते हैं। जिस प्रकार एक हीरे को जितने Angle (कोण) से देखते है उतने ही अलग-अलग रंग दिखाई पड़ते हैं। उसी प्रकार यह जितने लोगों के सम्पर्क में आएगी उतने प्रकार से उसकी व्याख्या की जायेगी।

महात्मा गांधी के अनुसार-  शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के शरीर मन और आत्मा में निहित सर्वोत्तम शक्तियों के उद्घाटन से हैं।

रविंद्र नाथ टैगोर- शिक्षा का आशय मस्तिष्क को इस योग्य बनाना है कि वह चिरंतन सत्य को पहचान सके इसके साथ एक रूप हो सके और उसे अभिव्यक्त कर सके। 

अरविंद के अनुसार-  के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों का विकास है। 

स्वामी विवेकानंद के अनुसार- मनुष्य में निहित परिपूर्णता का उद्घाटन करना ही शिक्षा है मनुष्य के भीतर की ज्ञान बाहर से कोई ज्ञान नहीं दिया जा सकता। 

प्लेटो के अनुसार- प्रत्येक बालक की प्राकृतिक शक्तियों क्षमताओं और योग्यताओं के स्वत: और स्वाभाविक विकास का नाम शिक्षा है। 

अरस्तु के अनुसार- शिक्षा का अर्थ है शरीर स्वस्थ में स्वस्थ मन का निर्माण करना। 

उपनिषद के अनुसार- “शिक्षा का अंतिम लक्ष्य निर्वाण है।“ 

कौटिल्य के अनुसार- शिक्षा का अर्थ है देश के लिए प्रशिक्षण और राष्ट्र के प्रति प्यार।

शिक्षा के विभन्न अर्थों को मिलाकर देखा जाए तो शिक्षा का अर्थ यह निकलकर आता है की- शिक्षा वह मात्रा नहीं है जो मानव मस्तिष्क में डाली जाती है। बल्कि इसमें मानव निर्माण, चरित्र निर्माण, जीवन निर्माण और विचारों को आत्मसात करना होता है।

शिक्षा का शाब्दिक अर्थ- भारतीय दृष्टिकोण में शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की शिक्ष धातु में अ प्रत्यय लगने से बना है। शिक्ष का अर्थ है सीखना और सिखाना। इसलिए शिक्षा का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया। यदि हम शिक्षा के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द एजुकेशन पर विचार करें तो उसका भी यही अर्थ निकलता है। एजूकेशन शब्द लैटिन भाषा के एजूकेटम (Educatum) शब्द से बना है और एजूकेटम शब्द उसी भाषा के 'ए' (E)  तथा ‘डूको' (Duco) शब्दों से मिलकर बना है। 'ए' का अर्थ है अन्दर से और ‘डूको' का अर्थ है आगे बढ़ाना। इसलिए एजूकेशन शब्द का अर्थ हुआ बच्चे की आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करना। इस प्रकार शिक्षा शब्द का समग्र रूप से अर्थ बालक की जन्मजात शक्तियों का सर्वांगीण विकास है।


शिक्षा के तीन अर्थ (Three Meaning of Education)

1. संकुचित अर्थ (Narrow Meaning)    

2. व्यापक अर्थ (Wider Meaning)   

3. वास्तविक अर्थ (Actual Meaning)


1. शिक्षा का संकुचित अर्थ- संकुचित अर्थ में शिक्षा से तात्पर्य स्कूली शिक्षा से है, जिसमें नियन्त्रित वातावरण में बालक को बिठाकर पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान कराया जाता है। जो निश्चित अवधि में सम्पन्न होती है एवं प्रौढ़ों द्वारा निश्चित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। शिक्षा के अर्थ में बालक का स्थान गौण एवं शिक्षक का स्थान मुख्य होता है। व्यक्ति का विद्यालयी जीवन ही शिक्षा काल होता है।" शिक्षा के संकुचित अर्थ तथा महत्व को स्वीकार करते हुए जी.एच. थॉमसन ने कहा है "शिक्षा एक तरह का वातावरण है, जिसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में आदतों, चिन्तन तथा दृष्टिकोण पर स्थायी रूप में परिवर्तन के लिए पड़ता है।"

2. शिक्षा का व्यापक अर्थ- व्यापक दृष्टि से शिक्षा का अर्थ उन सभी अनुभवों से है, जिन्हें बालक विभिन्न परिस्थितियों में अर्जित करता है। इस तरह 'शिक्षा' जीवनपर्यन्त चलने की प्रक्रिया है। बालक प्राकृतिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है। उम्र बढ़ने के साथ ही साथ वह बालक सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय कई अर्जित अनुभव प्राप्त करता है। इस तरह के अर्जित अनुभव शिक्षा कहलाते हैं। सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। व्यापक दृष्टि में व्यक्ति शिक्षक तथा शिष्य दोनों ही हैं। इस शिक्षा प्रक्रिया में व्यक्ति पर किसी तरह का अंकुश नहीं होता है। शिक्षा यापक अर्थ को स्पष्ट करते हुए प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री टी. रेमण्ट ने लिखा है, “शिक्षा विकास का वह क्रम है जो बाल्यावस्था से परिपक्वावस्था तक चलता है एवं उसमें मनुष्य अपने आपको आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है|" इस तरह अर्जित अनुभवों के आधार पर अपने को विभिन्न वातावरण के साथ अनुकूलन करने की क्षमता का विकास करना ही शिक्षा है। डम्बिल के अनुसार, “शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव आते हैं, जो मानव को बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त तक प्रभावित करते हैं।  मैकेन्जी के अनुसार, "व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवनपर्यन्त चलती है तथा जीवन के हर अनुभव से उसमें वृद्धि होती है।” शिक्षाशास्त्रियों के कथन से स्पष्ट है कि शिक्षा सिर्फ घर अथवा विद्यालय तक ही सीमित नहीं है, शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। लॉक का कथन भी इसी विचार की पुष्टि करता है, “जीवन ही शिक्षा है तथा शिक्षा ही जीवन है।”

3. शिक्षा का वास्तविक अर्थ- शिक्षा के शाब्दिक, संकुचित तथा व्यापक अर्थ से शिक्षा की वास्तविक अवधारणा स्पष्ट नहीं होती। अब प्रश्न उठता है कि हमें शिक्षा का कौन सा रूप ग्रहण करना चाहिए या नहीं। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह जरूरी नहीं कि शाब्दिक अर्थ वास्तविक अर्थ भी हो। व्यापक अर्थ में शिक्षा बहुत उदार हो जाती है, पर उससे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है। अतः शिक्षा के सही अर्थ के लिए जरूरी है कि हम सभी तरह के अर्थों को एक समवेत रूप में लेकर चलें। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समन्वित रूप से निम्न तरह व्यक्त किया जा सकता है-“शिक्षा एक ऐसी सामाजिक तथा गतिशील प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के जन्मजात गुणों का विकास करके, उसके व्यक्तित्व को निखारती है एवं सामाजिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाती है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को उसके कर्तव्यों का ज्ञान कराते हुए उसके विचार तथा व्यवहार में समाज हेतु कल्याणकारी परिवर्तन लाती है।"


शिक्षा की जरूरत:-

व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक शिक्षा की जरूरत बनी रहती है। हर क्षण उसका प्रभाव किसी न किसी रूप में अवश्य उपलब्ध रहता है। व्यक्ति का अस्तित्व बिना शिक्षा के इस तरह मालूम होता है, जैसे बगैर पतवार के नाव। हर व्यक्ति को हर क्षण तथा हर स्थान पर शिक्षा की जरूरत अनुभव होती है।

इस तरह निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा शिक्षा की जरूरत को मानव जीवन से जोड़ा गया है -

(1) अन्तर्निहित शक्तियों के समुचित विकास हेतु।    

(2) प्रत्येक प्राणी की अन्तर्निहित शक्तियों को समझने हेतु।

(3) मानवीय गुणों के संचार के लिए।    

(4) प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को समझने के लिए।

(5) राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए।

(6) व्यक्ति में सहयोग, प्रेम, सहानुभूति, करुणा, बलिदान, न्यायप्रियता एवं समाजसेवा आदि की भावना के विकास हेतु शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है।     

(7) व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास के लिए।

(8) आधुनिक समाज की प्रकृति, आवश्यकताओं तथा कर्तव्यों के ज्ञान के लिए।    

(9) अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की समुचित सन्तुष्टि के लिए।

इस तरह मानव जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है। अपितु शिक्षा की तरफ ध्यान आकर्षित करने में ही हमारा कार्य पूर्ण नहीं हो जाता, हमें शिक्षा के स्वरूप को परिष्कृत करके लागू करना चाहिए।