Subscribe Us

header ads

कठपुतली कला

भारतीय राज्यों के प्रमुख कठपुतली परंपराओं की सूची


पुतलीकला की खोज मानवजाति के लिए एक उल्‍लेखनीय एवं महत्‍वपूर्ण अविष्‍कारों में से एक है। यह कहा गया है कि पुतली की उपयोगिता उसके लिए अपने जीवन से भी बढ़कर है और इसीलिए यह आकर्षक एवं स्‍थायित्‍व को लिए हुए हैं ।  

प्राचीन हिन्‍दू दर्शानिक पुतलकारों का बहुत ही सम्‍मान करते थे। वे पुतलकारों को सर्वशक्तिमान विधाता और पूरे ब्रहमाण्‍ड को एक पुत्‍तल मंच मानते थे। महान ग्रन्‍थ श्रीमद् भागवत, भगवान श्री कृष्‍ण के बालरूप की नह्द कथा के अनुसार भगवान धागों सत्, रज और तम प्रत्‍येक से पूरे विश्‍व को कठपुतली की भांति चलाते हैं।

संसकृत शब्‍दावली को पुतलीका तथा पुट्टीका का अर्थ ‘छोटे पुत्रों’ से है। पुतली शब्‍द लेटिन भाषा के ‘प्‍यूपा’ से लिया गया है जिसका अर्थ है पुतली है। भारत को पुतलियों का घर कहा जाता है लेकिन अभी भी इस सम्‍बंध में बहुत सारी सम्‍भावनाओं को खोजने की आवश्‍यकता है।

पुतली कला की प्राचीनता के सम्‍बंध में पहली एवं दूसरी सदी ईसा पूर्व में लिखे गए लेख तमिल ग्रन्‍थ ‘सिल्‍पादीकर्म’ में पाए जाते हैं।


नाटयशास्‍त्र दूसरी सदी ईसा पूर्व से द्वितीय सदी इसवीं तक के दौरान कभी कभार नाटयशास्‍त्र पर प्रभावशाली ढंग से लिखे गए लेख पुतली कला का वर्णन नहीं मिलता है लेकिन मानव नाटय के निर्माता-सह निर्देशक को ‘सूत्रधार’ के रूप में प्रभावित किया गया है जिसका अर्थ धागों से है। इस शब्‍द ने नाटय शब्‍दावली में शायद अपना स्‍थान ‘नाटयशास्‍त्र’ के लिऐ जाने से बहुत पहले पाया है, लेकिन यह शब्‍द पुतलीकला नाटय (रंगमंच) से अवश्‍य आया होगा। इस प्रकार पतुलीकला नाटय में 500 ईसा पूर्व भी बहुत पहले वर्षों से आयी होगी।

भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब लोककलाओं में झलकता है। इन्हीं लोककलाओं में कठपुतली कला भी शामिल है। यह देश की सांस्कृतिक धरोहर होने के साथ-साथ प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम भी हैं। कठपुतली कला इंसानों की सबसे उल्लेखनीय और सरल आविष्कारों में से एक है। इस कला का इतिहास बहुत पुराना है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी की अष्टाध्यायी में 'नटसूत्र' में ' कठपुतली नाटक' का उल्लेख मिलता है। कहानी ‘सिंहासन बत्तीसी’ में भी विक्रमादित्य के सिंहासन की 'बत्तीस पुतलियों' का उल्लेख है।  

आज यह कला चीन, रूस, रूमानिया, इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, अमेरिका व जापान आदि अनेक देशों में पहुँच चुकी है। इन देशों में इस विधा का सम-सामयिक प्रयोग कर इसे बहुआयामी रूप प्रदान किया गया है। वहाँ कठपुतली मनोरंजन के अलावा शिक्षा, विज्ञापन आदि अनेक क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा रहा है।


कठपुतली कला के प्रकार (शैली)
यह चार प्रकार के होती हैं जिन पर नीचे चर्चा की गई है:

1. धागा कठपुतली

यह शैली अत्‍यंत समृद्ध और प्राचीन है। इसमें कठपुलती को अनेक जोड़ युक्‍त अंग तथा धागों द्धारा संचालित किया जाता है। राजस्‍थान, उड़ीसा, कर्नाटक और तमिलनाडु में यह शैली बहुत लोकप्रिय है।


2. छाया कठपुतली

इस शैली में कठपुतलियां चपटी होती हैं, अधिकांशत: वे चमड़े से बनाई जाती है । इन्‍हें पारभासी बनाने के लिए संशोधित किया जाता है। पर्दे को पीछे से प्रदीप्‍त किया जाता है और पुतली का संचालन प्रकाश स्रोत तथा पर्दे के बीच से किया जाता है। दर्शक पर्दे के दूसरे तरफ से छायाकृतियों को देखते हैं । ये छायाकृतियां रंगीन भी हो सकती हैं। यह शैली उड़ीस, केरल, आन्‍ध्र प्रदेश, कनार्टक, महाराष्‍ट्र और तमिलनाडु में बहुत लोकप्रिय है।


3. दस्‍ताना कठपुतली

इस शैली को भुजा, कर या हथेली पुतली भी कहा जाता है । इन पुतलियों का मस्‍तक पेपर मेशे (कुट्टी), कपड़े या लकड़ी का बना होता है तथा गर्दन के नीचे से दोनों हाथ बाहर निकलते हैं । शेष शरीर के नाम पर केवल एक लहराता घाघरा होता है। इस शैली में अंगूठे और दो अंगुलियों की सहायता से कठपुतलियां सजीव हो उठती है। उत्‍तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और केरल में लोकप्रिय है।


4. छड़ कठपुतली

यह शैली वैसे तो दस्‍ताना कठपुतली का अगला चरण है लेकिन यह उससे काफी बड़ी होती है तथा नीचे स्थित छड़ों पर आधारित रहती है और उसी से संचालित होती है। यह कला पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में बहुत लोकप्रिय है।


भारतीय राज्यों के प्रमुख कठपुतली परंपराओं की सूची

1. आंध्र प्रदेश

थोलु बोम्मालता (छाया कठपुतली) और कोय्या बोम्मालता (धागा कठपुतली)


2. असम

पुतल नाच (यह धागा और छड़ कठपुतली का संयोजन है)


4. बिहार

यमपुरी (छड़ कठपुतली)


5. कर्नाटक

गोम्बा अट्टा (धागा कठपुतली) और तोगालु (छाया कठपुतली)


 6. केरल

ओअवा ज्यत्गेर (दस्‍ताना कठपुतली) और तोल पब्वाकुथू (छाया कठपुतली)


7. महाराष्ट्र

 कलासुत्री बहुल्य (धागा कठपुतली) और चम्माद्याचे बहुल्य (छाया कठपुतली)


8. ओडिशा

कंडी नाच (दस्‍ताना कठपुतली), रबाना छाया (छाया कठपुतली), काठी कुण्डी (छड़ कठपुतली), और गोपलीला कमधेरी (धागा कठपुतली)


9. राजस्थान

कठपुतली (धागा कठपुतली)


10. तमिलनाडु

बोम्मालात्तम (धागा कठपुतली) और बोम्मालात्तम (छाया कठपुतली)


11. पश्चिम बंगाल

पुतल नाच (छड़), तरेर या सुतोर पुतुल  (धागा) और बनेर पुतुल (दस्‍ताना)

कठपुतली कला विश्व के प्राचीनतम कलाओं में से एक है जिसे रंगमंच प्रदर्शित किया जाता है। इस कला में विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है। कठपुतली नाटकों की कथावस्‍तु पौराणिक साहित्‍य, दंत कथाओं और किंवदंतियों से प्रेरित होते हैं। आज के आधुनिक समय में सारे विश्‍व के शिक्षाविदों ने संचार माध्‍यम के रूप में कठपुतली कला की उपयोगिता के महत्‍व को अनुभव किया है।