Subscribe Us

header ads

"आत्महत्या"

Suicide (Author: R. Ranjan)


एक गीत का बोल है:- मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी....नासमझ लाया गम तो ये गम ही सही........ मर जाना एक बहुत बड़ी त्रासदी है। शायद सबसे बड़ी। तमाम दुख, तकलीफें, खुशियां, असंतुष्टि, नेम, फेम या बदनामी का अस्तित्व तभी तक है, जब तक सांसें चल रही हों। एक बार दम निकला नहीं कि सब कुछ निरर्थक हो जाता है फिर भी लोग मर जाते हैं। खुशी-खुशी पूरे होशो-हवास में जान जैसी चीज लुटा देते हैं, जिसको वापस पाने का कोई जरिया नहीं।


आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। इन दिनों तो हर आयु वर्ग में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आए दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते-देखते होंगे कि किसी परेशानी से आजिज आकर परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या फिर उसने इसका प्रयास किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या (Suicide) करते हैं। यानी हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान ले लेता है। WHO की ओर से आत्महत्या (Suicide) पर जारी ग्लोबल डाटा के मुताबिक आत्महत्या (Suicide) करने वालों में 15 से 29 साल के लोगों की तादाद सबसे ज्यादा है। खुदकुशी या आत्महत्या (Suicide)के बारे में लोग अक्सर बात करने से हिचकते हैं। ऐसे में होता यह है कि जो लोग खुदकुशी करने के विचारों या जज्बात  से जूझ रहे होते हैं, वो किसी से बात नहीं कर पाते और खुद को अकेला महसूस करते हुए खुदकुशी के विकल्प को आखिरी हल मान बैठते हैं।

थक गया हूँ सोती रातों में जाग-जाग कर,
थक गया हूँ ये जिन्दगी ........... करते-करते।
न जाने कब रुकेगी यह जिन्दगी की कशमकश,
या रुक जाएगी कशमकश जिन्दगी की।
शायद अब उस मुकाम पे आ गया हूँ,
जहाँ मिल जाए इस दिल को सुकून,
जज्बात खामोश हो जाए,
आँख बंद हो जाए और सर्द हो जाए
ये तथाकथित गर्म खून।
हाँ थक गया हूँ अब .................., 

हम यह भूल जाते हैं की व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह हमेशा अपने चारों ओर लोगों से घिरा रहना पसन्द करता है। इसलिए अकेले रहने वाले व्यक्ति को जिन्दगी में खालीपन लगने लगता है, इससे उसकी निराशा बढ़ती है। इस कारण उसमें जीने की उमंग ही नहीं रह जाती या फिर जीवन निरश लगने लगता है और वह आत्महत्या करने की सोचने लगता है। आज हममें से ज्यादातर लोग यह महशूस करते हैं की, कहने को तो वे लोगों से घिरे रहते हैं, परिवार में ये हैं-वो हैं, माता-पिता हैं, भाई-बहन है, हमसफर है, कई जानने वालें हैं, दुनियां भर के दोस्त-साथी, फेसबुक, इनस्टाग्राम, और न जाने क्या-क्या, कहने को तो पूरी दुनियां आज एक गांव की तरह है, फिर भी हमलोग शायद अकेले हैं, हाँ शायद अकेले हैं। हम अकेले क्यों हैं यह हमें जानना चाहिए।  

जिंदगी कभी आसान नहीं होती, हमें खुद इसे आसान बनाना पड़ता है, कुछ नजर अंदाज करके, कुछ बर्दाश्त करके।

साहब मीठा सा होता है सफर जिन्दगी का कड़वाहट तो किसी से ज्यादा उम्मीद रखने से ही होती है। कहते हैं इच्छाएँ, सपने, उम्मीदें और नाखून इन्हें समय-समय पर काटते रहें, अन्यथा ये दुखःका कारण बनते हैं। इस दुनिया में जो भी होता है उम्मीद के कारण ही होता है तो इस भौतिकवादी युग में लोगों से उम्मीद न के बराबर रखना चाहिए। हमारी मानें तो उम्मीद न रखें तो बेहतर। लेकिन हाँ यह भी होना चाहिए की बिना किसी उम्मीद के रिश्तों में अपनी तरफ से मिठास बनाएं रखने की पूरी कोशिश होनी चाहिए। हर रिश्ता समय माँगता है और हम रिश्तों में समय ही देना पसंद नहीं करते हैं। आज हम घंटों फेसबुक/इन्स्टाग्राम/व्हात्सप्प पर अनजान लोगों के साथ समय बिता देते हैं। न जाने कई ऑनलाइन ग्रुप बना कर/ज्वाइन कर घंटों समय देते हैं। लेकिन अपनों को जानने के लिए/समझने के लिए रद्दी भर भी समय देना पसंद नहीं करते हैं। हमेशा यही सोचतें हैं यार वो पहल करते ही नहीं, वो कॉल करते ही नहीं, उनको तो हमसे मतलब ही नहीं/हमको उनसे मतलब ही नहीं, यार वो तो हमारे बारे में ये सोचतें हैं और न जानें क्या-क्या .........। तो साहब आप बिना किसी उम्मीद के निसंकोच आप बात करके तो थोड़ा देखिए। यह याद रखिए हमेशा वही नहीं मिलेगा जो आप दूसरों को देते हैं। निर्भरता और उम्मीद में फर्क करना सीखिए। सबमें कमियां हैं, दोषमुक्त कोई भी नहीं। तो साहब हो सके तो बिना माप-तौल के थोड़ा रिश्तों को समय दीजिए।

कहीं से लौट जाने के लिए पहले कहीं आना होता है पूरी तरह। जो आया ही नहीं, वो लौटेगा क्या। दरअसल हम कहीं भी खुद को सम्पूर्णता से नहीं ले जाते, बचा ही लेते हैं थोड़ा दरअसल हमें आता ही नहीं आना। शायद हमें आता ही नहीं किसी को ठीक से आने देना, हम खुद के इश्क में पड़े लोग ...... न आना जानते हैं, न लौट जाना ना हमें रोकना आता है, न रुक जाना ..... बस थोड़ा सा कहीं शेष रह जाता है, किसी का थोड़ा सा शेष बचा लेते हैं।   

आत्महत्या: पहली बात तो यह कि आत्महत्या शब्द ही गलत है, लेकिन यह अब प्रचलन में है। आत्मा की किसी भी रीति से हत्या नहीं की जा सकती। हत्या होती है शरीर की। इसे स्वघात या देहहत्या कह सकते हैं। दूसरों की हत्या से ब्रह्म दोष लगता है लेकिन खुद की ही देह की हत्या करना बहुत बड़ा अपराध है। जिस देह ने आपको कितने भी वर्ष तक इस संसार में रहने की जगह दी। संसार को देखने, सुनने और समझने की शक्ति दी। जिस देह के माध्यम से आपने अपनी प्रत्येक इच्‍छाओं की पूर्ति की उस देह की हत्या करना बहुत बड़ा अपराध है। जरा सोचिए इस बारे में। आपका कोई सबसे खास, सगा या अपना कोई है तो वह है आपकी देह। 

अगर आप Hinduism में विशवास रखते हैं तो आप यह तो जरुर जानते होंगे कि  हमलोगों को यह मानव शरीर  84 लाख बोडिज (Stages)  के बाद पाते हैं ( There is a saying that We got our present human body (or human life) only after our soul is passed through 8.4 million species. In Bhagavad Gita , Lord Sri Krishna himself told to arjuna that the soul passes 8.4 million bodies and at last it will get a human life. There are also many other Granthas (based on Bhagavad gita) state that we will get a human body/ human life only after the soul passes through 84,00,000 different species and also states that human life is the last one that the soul will get.) क्या इसे हम यूँही जाने दें या यूँ कहें जिंदगी जिये नहीं बल्कि ढोयें/निरश बना दें/आत्महत्या कर लें। जिंदगी ढोना नहीं है और न ही त्यागना है बल्कि जीना है और जीना ऐसे है कि हम मरते वक्त यह कह सके कि यार क्या जिंदगी जिया मजा आ गया जी कर। चलिये अगर आप Hinduism को नहीं भी मानते हैं तो कम से कम इतना तो जरुर समझते हैं कि जिंदगी है बहुत अनमोल।     


क्यों आती है आत्महत्या की भावना?

✪ आत्महत्या और सामाजिकता इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है कि जो शक्तियां समाज को तोड़ती हैं वही व्यक्ति को भी आत्महत्या के लिए मजबूर करती है। सामाजिक जीवन में फंसे हुए अनेक व्यक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्बन्धों से वंचित रह जाते हैं और कई बार वे अपने जीवन से निराश भी हो जाते हैं और आत्मसुरक्षा की भावना को खो देते हैं, फलस्वरूप व्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाता है और वह आत्महत्या कर लेने की स्थिति में होता है।

✪ वर्तमान नवीन परिस्थितयों में समाज की विभिन्न निर्णायक इकाइयों में तीव्र गति से परिर्वतन हुए हैं। रीति-रिवाज, धर्म, कला, विश्वास, परम्परा, मान्यता और आधुनिकीकरण आदि सभी कुछ बदला है। परिवार जिसमें व्यक्ति रहता है, जो कि समाज की प्राथमिक और आधारभूत इकाई है, इसमें भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है। नवीन परिस्थियों के कारण व्यक्ति ने अपने परिवार को उसके अनुकूल करने का प्रयत्न किया, परन्तु परिवर्तन की तीव्रता के कारण उसका प्रयास असफल हो रहा है। इस असफल प्रयास के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति आत्महत्या की ओर उन्मुख हो जाता है।

✪ मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है, वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली, रहन-सहन और भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आकर्षण, पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

✪ व्यक्ति निर्धनता, बेकारी, प्रेम में असफल होकर, सामाजिक नियम, रूढ़ि, परम्परा को तोड़ने के पश्चात में या फिर अपार आर्थिक क्षति हो जाने के कारण देनदारियों से चिंतित होकर आत्महत्या की ओर प्रवृत्त होता है।

✪ सिद्ध समाजशास्त्री “इमाइल दुर्खीम” ने अपनी पुस्तक “ले सुसाइड” में आत्महत्या को एक सामाजिक तथ्य माना है और उसकी व्याख्या के लिए व्यक्तिक अथवा मनोवैज्ञानिक कारकों की अपेक्षा सामाजिक तथ्यों को आधार रूप में स्वीकार किया है। दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या तीन कारणों से होती है:-

1. अहमवादी आत्महत्या -
जिसके तहत सामाजिक जीवन से पृथक व्यक्ति एकान्तवास में बोझिल मन को वश में नहीं रख पाता हैं और आत्महत्या कर लेता है। व्यक्ति यह समझता है कि समाज द्वारा उसकी उपेक्षा की जा रही है। इसमे यह भी देखने को मिला है कि विवाहित व्यक्तियों की अपेक्षा अविवाहित लोग पारिवारिक जीवन में कम सम्पर्क होने के कारण अधिक आत्महत्याएं करते हैं।

2. असामान्य आत्महत्याएं -
इस प्रकार की आत्महत्या तब होती है जब व्यक्ति के सामने एकाएक असमान्य परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। असामान्य परिस्थिति में व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह आत्महत्या कर लेता है। भीषण आर्थिक संकट, जिसमें दिवाला निकल जाने के कारण मानसिक रूप से परेशान होने पर, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक आर्थिक सम्पन्नता, जैसे लॉटरी निकल आने की खुशी के कारण। अर्थात दोनों ही परिस्थितयों में व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है।

3. परार्थी आत्महत्या -
इसमें सामूहिक हित के लिए आत्म बलिदान की भावना से प्रेरित होकर जो आत्महत्या की जाती है, उसे परार्थी आत्महत्या कहा जाता है। भारत में सती-प्रथा तथा जापान में हरा-किरी परार्थी आत्महत्या के ही उदाहरण रहे हैं।

✪ आत्महत्या व्यक्ति की असंतुलित अवस्था है, जबकि वह अपने चारों ओर की परिस्थितियों को अनुकूल नहीं कर पाता है। आत्महत्या के दूसरे कारणों पर यदि हम चर्चा करें तो पाते है कि इसके और भी कारण समाज में व्याप्त हैं, जैसे -

✪ प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न अनुभव होते हैं और उनकी मनोवृतियाँ और दृष्टिकोण भी भिन्न होते हैं। इसलिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण सामाजिक मूल्यों के अनुकूल नहीं रहते हैं तो व्यक्ति आत्महत्या करने की ओर अग्रसर होता है। इसका उदाहरण प्रायः समाचार पत्रों आदि में आपको मिल जाता है कि एक व्यक्ति किसी दूसरी जाति की लड़की से शादी करना चाहता है, परन्तु जाति-बिरादरी उसके आड़े आ जाती है तो वह प्रेम में असफल होकर आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार समाज में प्रचलित आत्महत्या, व्यक्तिक मनोवृत्तियों और सामाजिक मूल्यों के संघर्ष का ही परिणाम होता है।

✪ सामाजिक संरचना भी आत्महत्या के लिए पर्याप्त उत्तरदायी होती है। प्रत्येक व्यक्ति की एक मान्य स्थिति होती है। कभी-कभी सामाजिक परिस्थियां एकाएक बदल जाती है, व्यक्ति परिस्थियों के साथ चलने में असहज महसूस करता है और उसके सामने संकट उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार के होते है-

✪ पहला “आकस्मिक”, जिसके तहत व्यक्ति को अपने जीवनसम्बन्धी कार्यक्रमों को एकदम बदलना पड़ता है. इसका उदाहरण यह हो सकता है कि परिवार में एकाएक पति की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर पत्नी को बच्चों के पालन-पोषण के लिए धन उपार्जन करना होगा।

✪ दूसरा है “संचयी संकट”, जो पहले से ही हो। जैसे सास-बहू में निरंतर मन-मुटाव। जब यही प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है तो बहू एक दिन आत्महत्या कर लेती है।

✪ हमारे यहां शिक्षा-प्रणाली अनुपयोगी है। एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति रोजगार परक शिक्षा न होने के कारण दर-दर की ठोकरें खाता है और रोजगार न मिलने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।

✪ धार्मिक रूढ़िवादिता- कई व्यक्ति धार्मिक रूढ़िवादिता व अंधविश्वास के कारण विभिन्न सामाजिक परिस्थितयों से अनुकूलन करने में असफल हो जाते हैं और आत्महत्या का शिकार होते हैं। हमारे देश में मंदिरों व धर्मशालाओं में धर्म की आड़ में दुराचारी व्यक्ति, ठग, बदमाश आदि संरक्षण प्राप्त करते हैं।

✪ परिवारिक परिस्थति परिवार में बच्चों पर ज्यादा लाड-दुलार भी उनकी मनमानी की छूट देता है, परन्तु जब उन पर रोक लगाई जाती है तो रोक को वह सहन नहीं करते है और आत्महत्या कर लेते हैं।

✪ कुछ व्यक्ति युद्ध के मैदान में भयंकर दृश्यों को देखकर मानसिक संतुलन खो देते हैं। माताएं व पत्नियां अपने पुत्रों व पतियों को खोकर पागल हो जाती हैं और आत्महत्या कर लेती हैं। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ऐसे कई प्रकरण देखने को मिले।

✪ निर्धनता भी आत्महत्या का एक कारण है। विभिन्न समाचार पत्रों, रेडियो व टी.वी. चैनलों से पता लगता है कि गरीबी से तंग आकर बडी संख्या में लोग आत्महत्याएं करते हैं।

✪ बेकारी की स्थिति में व्यक्ति अपने आपको असहज महसूस करता है और उसके मन में आशंका, अशान्ति व परेशानी रहती है और वह एक प्रकार से मानसिक रोगी की तरह हरकतें करने लगता है।

✪ आर्थिक संकट कई बार व्यक्ति किसी बडी हानि को सहन नहीं कर पाते हैं और अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और .....।

✪ एक कारण जनसंख्या वृद्धि भी है, जिसके कारण सभी को रोजगार मिल पाना संभव नहीं है, इससे निर्धनता, बेकारी आदि को प्रोत्साहन मिलता है। इसमें व्यक्ति परेशान होता है।

✪ औद्योगिक तनाव- उद्योगधंधों के विकास के साथ ही औाद्योगिक तनाव भी बढ़ा है। हड़ताल, तालाबन्दी के कारण श्रमिक बेकार, निर्धनता, ऋणग्रस्तता आदि से दब जाता है।

✪ गंदी बस्तियां- गंदी जगहों पर रहने के कारण अनेक भयंकर रोगों से ग्रसित व्यक्ति के पास इलाज के लिए पैसा न होने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होता है।

✪ आधुनिकता का आकर्षण- चलचित्र या सिनेमा में प्रदर्शित आकर्षण, भोगविलास व रोमांसपूर्ण जीवन को देखकर अनेक युवक-युवतियां उसका अनुसरण करना चाहते हैं, परन्तु सामाजिक दबाव में जब नहीं कर पाते हैं तो मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और ऐसी धुन में वह आत्महत्या तक कर लेते हैं।

✪ समाचार पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित कलापूर्ण चोरी, डकैती, जालसाजी, अपहरण आदि की घटनाएं युवक-युवतियों को गलत रास्ते पर चलने को प्रेरित करती है, जिसका परिणाम भी अंत में आत्महत्या करने पर ही समाप्त होता है।

✪ मोबाइल आज झूठ बोलने की फैक्ट्री के रूप में उभर कर सामने आया है आज मोबाइल से युवक-युवतियां अपने परिवार में अपने माता-पिता से ही झूठ बोलते है और जब उनका झूठ पकड़ा जाता है तो वह भी आत्महत्या तक जा पहुँचता है।

✪ युवा तनाव- देश के युवा वर्ग की इच्छाओं व आकांक्षाओं का कोई सम्मान नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में अनेक युवा सामाजिक मूल्यों के विरोधी हो जाते है और उनकी इच्छापूर्ति न होने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।

✪ राजनीतिक उथल-पुथल, व्यक्तिगत असमानताएं, भौतिकवादी विचारधारा, धनी-निर्धन का भारी भेद भी समाज में आत्महत्या को प्रोत्साहित करते हुए देखे गये हैं


कैसे करें आत्महत्या के विचार का अंत?

✪ डिस्ट्रेस से बचें: स्ट्रेस भी दो प्रकार का होता है, जो स्ट्रेस आपको जीवन या कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे, उसे आप पॉजिटिव स्ट्रेस कह सकते हैं। जैसे प्रमोशन पाने के लिए कुछ ज्यादा काम करना। किसी साहसपूर्ण जोखिम भरे कार्य को अंजाम देना। वहीं स्ट्रेस का दूसरा प्रकार डिस्ट्रेस होता है, जो शरीर में कई बीमारियां पैदा करता है। यह स्ट्रेस का गंभीर प्रकार है। डिस्ट्रेस शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोंस को रिलीज करता है। इस कारण शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

✪ मनुष्य का मन विचारों का कारखाना है। विचारों का यह कारखना उसका भविष्य तय करता है और उसे कल्याण तथा बुराई की ओर अग्रसर करता है।

✪ विचारों पर नियंत्रण- मनुष्य ऐसा प्राणी है जिसकी सोच कभी सकारात्मक और कभी नकारात्मक होती है। व्यक्ति को अपनी सोच को नियन्त्रित रखना होगा ताकि सफल जीवन जी सके। यदि आपके मन में सकारात्मक विचार होंगे तो आपके सफल होने की उम्मीद कई गुना बढ़ जाती है। क्योंकि सकारात्मक व्यक्ति की सोच की विविधता और गुणवत्ता ही उसके जीवन जीने की कला को निश्चित करती है। अतः हम कह सकते हैं कि सुन्दर विचार मनुष्य और समाज को सफलता के चरम तक ले जा सकते हैं।

✪ नियमित व्यायाम एवं योगा- कुछ अन्य उपायों के तहत व्यक्ति को एक्सरसाइज करनी चाहिए क्योंकि एक्ससाइज करने से ब्रेन से एंडाफिन्स नामक हार्मोन सक्रिय होते हैं जो अच्छा महसूस कराते हैं। इसके अतिरक्त योगा भी किया जा सकता है। खासकर दिनभर बैठ कर काम करने वाले व्यक्यिों के लिए यह आवश्यक ही है।

✪ स्वयं को दें उपहार- प्रत्येक दिवस दूसरों के लिए जीने के अतिरिक्त कभी-कभार खुद के लिए भी जिएं। बाजार में जाकर अपनी पसन्द की शॉपिंग करें तथा कुछ अच्छा खायें-पियें। इससे आपको आत्मिक सुकून महसूस होगा।

✪ साथ ही अपने अच्छे दोस्तों से मिलने का कार्यक्रम बनाये तथा मिलने पर पुरानी यादों में खो जाये तथा उन यादों में हंसी वाले पलों को याद करके हंसें व हंसायें।

✪ दैनिक कार्यों को करें सूचीबद्ध- अपने काम की सूची पहले से ही बनाकर रखें तथा उसमें प्राथमिकता का ध्यान रखें। इससे तनाव काफी हद तक कम हो जायेगा और आप स्वयं को और पारिवारिक जनों को भी समय दे पाएंगे

✪ इसके अतिरिक्त कभी-कभी न कहना भी सीखें, जैसे आपके पास यदि पहले से ही काफी काम है और आपको अभी उसे निपटानें में समय लगेगा तो आप विनम्रता से अगला काम न लेने का निवेदन सामने वाले से कर सकते हैं।

✪ अपने बैठने के स्थान व अपनी मेज कुर्सी आदि की साफ-सफाई रखें अनावश्यक फाइलों और वस्तुओं को कही साइड में बन्द कर रखें। इससे नवीन सोच बनाने में आपको सहायता मिलेगी।

✪ यदि मन में सुसाइड का ख्याल आ रहा है तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ बैठकर अपने मन की सभी बातें बोल दें। जी भर कर रोएं, ऐसा करने से आत्महत्या की चाह कम हो जाती है।

✪ यदि परिवार के साथ बैठकर कोई बात साझा नहीं कर पा रहे हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक या कंसल्टेंट की मदद लें। उन्हें अपने मन की बात जरूर बताएं। ऐसा करने से दिल का बोझ हल्का होता है और कोई आपको आंकेगा इसका शक भी दूर होता है।

✪ खुद को अहमियत दें। इसके लिए आप दीवार पर एक कागज में अपनी अच्छाईयां लिखकर लगा दें।

✪ यदि आप बहुत लंबे वक्त से दोस्तों से नहीं मिले हैं तो फौरन उनसे मुलाकात करें। जो अच्छा लगता है वो करें, इससे दिमाग शांत होगा।

✪ सुबह-सुबह किसी एकांत जगह पर ताजी हवा में मॉर्निंग वॉक करने जाएं। कानों में हेडफोन लगाकर गाना सुनने की बजाय चिड़ियों, हवा में लहरा रहे पत्तों और पानी की आवाज को सुनें। इससे मन को शांति मिलती है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं।

✪ जो भी आपका पसंदीदा खेल है उसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

✪ किसी जरूरतमंद या गरीब की मदद करें, इससे आपका मन हल्का महसूस करेगा और उनके चेहरे की मुस्कान आपके मस्तिष्क को शांति देगी।

✪ हमेशा याद रखें खुद से बढ़कर कोई नहीं। जन्म लेने, खाना खाने, सांस लेने, पानी पीने और खुश रहने का मकसद जीवन को जीना है। जिंदगी में कितने भी उतार-चढ़ाव क्यों ना आएं आत्महत्या करने का ख्याल कभी मन में मत आने दीजिए।

✪ हॉबी से बनें क्रिएटिव- अपनी हॉबी को कमाई का जरिया बनाकर काम करें। जैसे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना, पेंटिंग सीखना, बागवानी करना आदि।

✪ हमेशा काम करते रहना। यह व्यक्ति को न केवल स्वस्थ्य रखेगा वरन् उसको नकारात्मक सोच से भी दूर रखेगा। टाइम अनुसूची बनाकर काम करने से व्यक्ति की जिंदगी में उत्साह व सकारात्मकता भी बनी रहती है और जिन्दगी खुशहाल रहती है।

✪ संगीत बन सकता है खुशहाल जीवन का माध्यम- लंन्दन के गोल्डस्मिथ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विषय के द्वारा किये गये शोध के अनुसार, “संगीत आपको आत्महत्या या हार्टअटैक से बचा सकता है। यदि कोई अपने हाथों में वाद्ययंत्र लेकर स्वयं प्रेक्टिस करें तो उन्हे इससे काफी आराम मिलता है”

✪ संगीत आपके लिए एक औषधि के रूप में काम करता है यह आपका मूड भी ठीक करेगा तथा बीमारी से भी बचाएगा। विभाग की प्रमुख डॉ. लारिनस्टेवर्ड का कहना है कि शोध से यह बात सामने आई है कि हीन भवना से ग्रस्त लोगों को उभारने में वाद्ययंत्र प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं।

✪ यदि आपको वाद्ययंत्र बजाना नहीं आता है तो रेडियो या किसी वाकमैन पर अपने मन पसन्द का संगीत सुने।

✪ वर्तमान समय में यह प्रयास यह होना चाहिए कि समाज में आत्महत्या को रोकने हेतु रचनात्मक प्रकारों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

✪ कभी कभी मन उदास होने लगता है उतना उत्साह नहीं रह जाता और यह सभी के साथ कभी न कभी होता है लेकिन इन्ही पलों में बहुत सतर्क होना चाहिए क्योंकि वख्त अपनी चाल चलते हुए गुजरता जाता है और हम भावनाओं में खोकर बहुत कुछ गवां बैठते हैं। धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है ….. लोग भी ..… रिश्ते भी ..…और शायद हर समय हम खुद भी ..….।  इसलिए हर लम्हे का उपयोग करते हुए अपने मिशन पर पूरी मुस्तैदी से लगे रहना चाहिए। यही सतर्कता हमें आगे जाकर सकारात्मक परिणाम देगी। ये तो तय है रात के बाद सुबह आना तय है, सवाल यह है कि हममें रात काटने का धैर्य कितना कितना है।

✪ साहब मैं तो बस यही कहूँगा कि यदि आप आस्तिक है तो सबकुछ ऊपर वाले के हाथों में छोड़कर और यदि आप नास्तिक है तो अपने ऊपर पूरा भरोसा कर सिर्फ खुश रहना चाहिए। खुशमिजाजी आपके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली बनाती है। हमेशा चिंतित और परेशान न होकर प्रसन्नता और धीरज से व्यवहार करना सीखें रिश्तों में बिना शर्त, बिना कोई माप-तौल, बिना कोई खास उम्मीद हो सके तो बिना कोई उम्मीद के, समय देना सीखें इससे लोगों के बीच आपकी छवि भी सकारात्मक बनेगी और आप समाज व देश के लिए कुछ करने में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वाहन करेंगे। 


धार्मिक दृष्टी से आत्महत्या को समझने की कोशिश करते हैं

इस्लाम धर्म में आत्महत्या: इस्लाम धर्म में ये तीन काम हैं सबसे बड़े गुनाह

जिस तरह हिंदू और ईसाई धर्म में स्वर्ग और नर्क का जिक्र है, ठीक उसी तरह इस्लाम धर्म में भी जन्नत और दोजख की बात कही गई है इस्लाम धर्म के अनुसार अच्छे काम करने वाले शख्स को मरने के बाद जन्नत नसीब होती है, जबकि बुरे काम करने वाले शख्स को दोजख की आग में जलना पड़ता है हालांकि, इस्लाम धर्म में आत्महत्या, इच्छा मृत्यु और किसी की हत्या को सबसे बड़े गुनाहों की श्रेणी में रखा गया है यानी अगर कोई ऐसा करता है तो उसे दोजख की आग में जलना होगा


वैदिक ग्रंथों में आत्मघाती दुष्ट मनुष्यों के बारे में कहा गया है:-

असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृता।
तास्ते प्रेत्यानिभगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

अर्थात: आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन कहते हैं।

अधर में लटक जाती आत्मा :

गरूड़ पुराण में जीवन और मृत्‍यु के हर रूप का वर्णन किया गया है। आत्‍महत्‍या को निंदनीय माना जाता है, क्‍योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है ऐसे में उसे व्‍यर्थ गंवा देना मूर्खता और अपराध है।

कहते हैं कि जो व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या करता है उसकी आत्‍मा हमारे बीच ही भटकती रहती है, न ही उसे स्‍वर्ग/नर्क में जाने को मिलता है न ही वह जीवन में पुन: आ पाती है। ऐसे में आत्‍मा अधर में लटक जाती है। ऐसे आत्मा को तब तक ठिकाना नहीं मिलता जब तक उनका समय चक्र पूर्ण नहीं हो जाता है। इसीलिए आत्‍महत्‍या करने के बाद जो जीवन होता है वो ज्‍यादा कष्‍टकारी होता है।

जीवन के चक्र को समझना जरूरी है : जैसे पूर्ण पका फल ही खाने योग्य होता है। जब फल पक जाता है तभी वह वृक्ष को त्याग कर खुद ही वृक्ष बनने की राह पर निकल पड़ता है। इसी तरह पूर्ण आयु जीकर मरा मनुष्य अच्छे जीवन के लिए निकल पड़ता है। कहते हैं कि मानव जीवन के 7 चरण होते हैं और प्राकृतिक प्रक्रिया के अनुसार, एक के पूरा होने के बाद ही दूसरी शुरू होती है। इसका सही समय और सही क्रम होता है। ऐसे में समय से पूर्व ही मृत्‍यु हो जाने से क्रम गड़बड़ हो जाता है। जिन व्‍यक्तियों की मृत्‍यु प्राकृतिक कारणों से होती है उनकी आत्‍मा भटकती नहीं और नियमानुसार उनके जीवन के 7 चरण पूरे हो चुके होते हैं। लेकिन जिन लोगों की मृत्‍यु, आत्‍महत्‍या करने के कारण होती है वो चक्र को पूरा न कर पाने के कारण अधर में रह जाते हैं।


मरने के बाद कब मिलता है दूसरा शरीर?

उपनिषद कहते हैं कि अधिकतर मौकों पर तत्क्षण ही दूसरा शरीर मिल जाता है फिर वह शरीर मनुष्य का हो या अन्य किसी प्राणी का। पुराणों के अनुसार मरने के 3 दिन में व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है इसीलिए तीजा मनाते हैं। कुछ आत्माएं 10 और कुछ 13 दिन में दूसरा शरीर धारण कर लेती हैं इसीलिए 10वां और 13वां मनाते हैं। कुछ सवा माह में अर्थात लगभग 37 से 40 दिनों में।

बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्हें 40 दिन बाद भी शरीर नहीं मिलता। उनमें से अधिकतर घटना, दुर्घटना में मारे गए या आत्महत्या वाले लोग ही ज्यादा होते हैं। ऐसे लोग यदि प्रेत या पितर योनि में चला गया हो, तो यह सोचकर 1 वर्ष बाद उसकी बरसी मनाते हैं। अंत में उसे 3 वर्ष बाद गया में छोड़कर आ जाते हैं। वह इसलिए कि यदि तू प्रेत या पितर योनि में है तो अब गया में ही रहना, वहीं से तेरी मुक्ति होगी।


किसे कहते हैं भूत : जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है। आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।

इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है। इसी तरह जब कोई पुरुष मरता है तो वह भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल या क्षेत्रपाल हो जाता है।

अतृप्त आत्माएं बनती है भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।


अकाल मृत्यु क्या होती है?

अकाल का अर्थ होता है असमय। प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा या प्रकृति की ओर से एक निश्चित आयु मिली हुई है। उक्त आयु के पूर्व ही यदि व्यक्ति हत्या, आत्महत्याण, दुर्घटना या रोग के कारण मर जाता है तो उसे अकाल मौत कहते हैं। उक्त में से आत्महत्या सबसे बड़ा कारण होता है। शास्त्रों में आत्महत्या करना अपराध माना गया है। आत्महत्या करना निश्चित ही ईश्वर का अपमान है। जो व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है वह मृत्यु के उपरांत तुरंत ही प्रेत बनकर अनिश्चित काल के लिए भटकता रहता है। उसे उस दौरान अनेक कठिनाइयों को सहना होता है। पीड़ा और पछतावा ही उसके प्रेत जीवन का प्रसंग बन जाता है।

पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' कहते हैं कि मरने के उपरांत नया जन्म मिलने से पूर्व जीवधारी को कुछ समय सूक्ष्म शरीरों में रहना पड़ता है। उनमें से जो अशांत होते हैं, उन्हें प्रेत और जो निर्मल होते हैं उन्हें पितर प्रकृति का निस्पृह उदारचेता, सहज सेवा, सहायता में रुचि लेते हुए देखा गया है।

पंडितजी का मानना है कि मरणोपरांत की थकान दूर करने के उपरांत संचित संस्कारों के अनुरूप उन्हें धारण करने के लिए उपयुक्त वातावरण तलाशना पड़ता है, इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वह समय भी सूक्ष्म शरीर में रहते हुए ही व्यतीत करना पड़ता है। ऐसी आत्माएं अपने मित्रों, शत्रुओं, परिवारीजनों एवं परिचितों के मध्य ही अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। प्रेतों की अशांति संबद्ध लोगों को भी हैरान करती हैं।

यदि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अत्यन्त विवश होकर आत्महत्या कर रहा है तो उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई है या वह गहरे तनाव के कारण ऐसा कर रहा है। ऐसी आत्मा की मुक्ति मुश्‍किल होती है। मुक्ति का अर्थ है या तो नया शरीर मिल जाए या मोक्ष मिल जाए। संतों तक को मोक्ष नहीं मिलता तो सामान्य की बात अलग है। अत: परेशान या अतृप्त आत्मा मुक्ति नहीं हो पाती और वह भूत, प्रेत या पिशाच जैसी योनि धारण कर भटकती रहती है। वह कम से कम तब तक भटकती है जब तक की उसके मृत शरीर की निर्धारित उम्र पूर्ण नहीं हो जाती या फिर श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कार्य से उसे मुक्ति नहीं मिलती।


आत्महत्या के बाद भी मिलता है नया जीवन

हिंदू धर्म अनुसार आत्महत्या करने के बाद भी व्यक्ति को जल्द ही दूसरा जन्म मिल सकता है लेकिन शर्त यह है कि उस व्यक्ति ने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए हो और उसकी कोई इच्छा नहीं रही हो। ऐसा शांत चित्त व्यक्ति भी अपने अगले जीवन की यात्रा पर निकल सकता है। हालांकि उसे अपनी देह की उम्र का समय सूक्षात्मा के रूप में रहकर ही भूगतना होता है। लेकिन यहां यह स्पष्ट कर देना उचित है कि ऐसे व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष तो जन्म और मरण से मुक्त होकर अपने आनंदस्वरूप में स्थित होना होता है। आत्महत्या करने का अर्थ ही यही है कि आप अभी मानसिकरूप से परिपक्व नहीं हैं।


आत्महत्या के परिणामों से मुक्ति के उपाय :

गुरूड़ पुराण में आत्महत्या के कारणों से मृत आत्मा की शांति हेतु कई उपाय बताए गए हैं। इसमें मृत आत्मा हेतु तर्पण करना, सद्कर्म करना (दान, पुण्य और गीता पाठ), पिंडदान करना, मृत आत्मा की अधूरी इच्छा को पूर्ण करना प्रमुख है। यह कार्य कम से कम तीन वर्ष तक चलने चाहिए तभी मृत आत्मा को मुक्ति मिलती है। तर्पण करने, धूप देने आदि से मृत आत्माएं तृप्त होती है। तृप्त और संतुष्ट आत्माएं ही दूसरा शरीर धारण कर सकती है या वैकुंठ जा सकने में समर्थ हो पाती है।

आपने पूरा लेख पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। 
राजीव रंजन